नई दिल्‍ली,1 अक्टूबर 2022

मेडिकल स्टोर या फिर किसी ऑनलाइन पोर्टल से खरीदी गई दवाएं (Medicine) असली है या नकली, यह जानना फिलहाल काफी मुश्किल काम है. लेकिन, आने वाले समय में आप झटपट दवाओं की गुणवत्‍ता के बारे में पता लगे सकेंगे.

सरकार दवा कंपनियों के लिए अपनी दवाओं के पैकेट पर बार कोड या क्‍यूआर कोड प्रिंट करना अनिवार्य करने वाली है. शुरुआत में टॉप सेलिंग 300 ब्रांड्स पर बार कोड या क्‍यूआर कोड प्रिंट होंगे. बार कोड या क्‍यूआर कोड छपे होने से दवा खरीदने वाला अपने मोबाइल से कोड स्‍कैन करके मेडिसिन के असली या नकली होने का पता लगा सकेगा.

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एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार का इरादा बाजार में बिकने वाली नकली दवाओं पर हर हाल में लगाम लगाना है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्‍व में बिकने वाली नकली दवाओं में से 35 फीसदी भारत में बनी होती है. इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने बताया, कि सभी तैयारियां कर ली गई हैं और अगले कुछ हफ्तों में इसे लागू कर दिया जाएगा.

चरणबद्ध तरीके लगेगा बार कोड
अधिकारी ने बताया कि आने वाले समय में बारकोड प्रिंट करना अनिवार्य होगा, इसलिए इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा. पहले कुछ चुनिंदा दवाओं पर बार कोडिंग करके बाजार में उतारी जाएगी और फिर इस नियम को पूरी फार्मा इंडस्‍ट्री पर लागू किया जाएगा. इसके लिए इंडस्‍ट्री से जुड़े लोगों से चर्चा की जा रही है. पहले चरण में 300 ब्रांडों की सूची जारी की जाएगी जो क्यूआर या बार कोड को अपनाएंगे.

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इन ब्रांडों में भारतीय फार्मा बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाली लोकप्रिय दवाएं जैसे एलेग्रा, डोलो, ऑगमेंटिन, सेरिडोन, कैलपोल और थायरोनॉर्म शामिल हैं.एक बार जब पहला चरण सुचारू रूप से पूरा हो जाएगा तो फिर इसकी समीक्षा के बाद लगभग सभी ज्‍यादा बिकने वाली दवाओं के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाएगा. सरकार पूरी फार्मा इंडस्‍ट्री के लिए एक बार कोड प्रदाता केंद्रीय डेटाबेस एजेंसी की संभावनाएं भी तलाश रही है.

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फॉर्मूलेशन पर भी बार कोडिंग जरूरी
जून में जारी ड्रॉफ्ट नोटिफिकेशन में सरकार ने कहा था कि फॉर्मूलेशन उत्पादों के निर्माता अपने प्राइमरी पैकेजिंग लेबल और सेकेंडरी पैकेज लेबल पर बार कोड या क्विंक रिस्‍पांस कोड प्रिंट करेंगे या  चिपकाएंगे. इनमें सॉफ़्टवेयर द्वारा पठनीय डेटा होगा. इस डेटा में एक विशिष्ट उत्पाद पहचान कोड, दवा का नाम, ब्रांड नाम, निर्माता का नाम और पता, बैच नंबर, निर्माण की तारीख, समाप्ति की तारीख और विनिर्माण लाइसेंस संख्या होगी. ऐसा होने से नकली दवा बनाना कठिन हो जाएगा.

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