-किसानों व महिला समूह स्वप्रेरित होकर 2200 हेक्टेयर में रागी फसल की खेती नें रचा नया कीर्तिमान

-इस दफा सुरक्षित व सुकून रूप से जैविक खेती में रागी फसल उत्पादन सेेंं हासिल करेेंगे आर्थिक सशक्तिकरण की नई राह

बलरामपुर।अपनी विपरीत भौगोलिक परिवेश की वजह से बलरामपुर-रामानुजगंज जिले का अधिकांश क्षेत्र वनाच्छादित होने के साथ-साथ अधिकांशत: आबादी कृषि कार्यों पर निर्भर होना व खरीफ सीजन में एकल फसल बतौर धान की खेती सहित मक्के का उत्पादन पर ही सर्वाधिक कृषकवर्ग सहित परिवार आश्रित रहते हैं।इस दरम्यान कभी मौसम की बेरूखी हो या किटो का प्रकोप जैसें अन्य कारणों से धान की फसल उतनी उत्पादन प्राप्त नहीं हो पाती रही, जिससे अपने परिवार का भरणपोषण अगले सीजन तक कर सकें,इस वजह से आजीविका वर्धन के लिए शहरी क्षेत्रों में मजदूरी जैसें कार्यों को करनें की मजबूरीयो सें कई महिनों तक परिवार व गांव से दूर जाकर रहने सें  पलायन बतौर एक बड़ी चुनौती कहे या समस्या अधिकांशतः क्षेत्रों में एक समान बनी हुई थी।इस अहम समस्या का समाधान कलेक्टर श्री श्याम धावड़े नें उस कहावत को चरितार्थ करनें में अपने कुशल नेतृत्व में जिला पंचायत सीईओ व उप संचालक कृषि विभाग अजय अनत द्वारा प्राप्त निर्देशो के परिपालन करते हुए जहां जितनी समस्या होगी वहीं सें समाधान के उतने ही अवसर भी प्राप्त होगा।इसे भौतिक धरातल पर कलेक्टर श्री धावड़े के कुशल नेतृत्व में  नजरिया व दूरगामी परिणाम सें जुड़े पहलूओं को परिवेश अनुरूप धरातल पर साकार करने के लिए समर्पित भाव से अपनी विभागीय टीम के साथ लगातार कार्यो को अमलीजामा पहनाने सें बदलाव शब्दों की जगह भौतिक धरातल पर साकार होने के राहों में अग्रसर हैं।यह दावा हमारा नही है वरन जिले के दूरस्थ अंचल के कुसमी विकासखंड के अंतर्गत सामरी पाट क्षेत्र, रामचंद्रपुर विकासखंड के अंतर्गत आने वाले दर्जनों गांवों सहित इसी चरण अनुरूप करीब करीब सभी विकासखंडो में कृषकवर्ग या घरेलू कामकाजी महिलाओं के समूह द्वारा रागी फसल उत्पादन के लिए जिस उत्साह व उमंग के साथ शुरुआत किया है, वह ना केवल आर्थिक रूप से समृद्ध होने की राहों पर अग्रसर है।

-तमाम चुनौतियों के वावजूद कार्यो की सफलता दर्ज कराएगी राज्य में जिले की पहचान

यह  बदलाव  प्रदेश के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल व राज्य सरकार की सबसे अहम प्राथमिकता में शामिल ग्रामीण क्षेत्रों में विकास शब्द के मायने को भौतिक धरातल पर समग्र विकास का मूर्त रूप से स्थायित्व के साथ अवसरों सें  ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की मंशा को साकार करने के लिए जनहितकारी योजनाओं का संचालन में जवाबदेह प्रशासनिक व्यवस्था व स्थानीय रहवासियों को लगातार प्रेरित करने के दिशा निर्देश सें मजबूत आत्मबल के साथ अपने क्षेत्र से ही बदलाव की शुरूआत में सहभागी स्थानीय रहवासी चाहे वह कृषक हो या अवसरों के अभाव में घरों की चार दिवारी में रहने वाली घरेलू कामकाजी महिलाओं के समूह नें अवसर प्राप्त होते ही अपनी मेहनत व लग्न से एक नई बयार कहें या क्रांतिकारी परिवर्तन बतौर प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में तमाम चुनौतियों के वावजूद अपनी अलग पहचान स्थापित आने वाले कुछ ही हफ्तों में दर्ज कराएगी ।

-डाड़ व परती रहने वाली भूमि में कम लागत कम खर्च पर लहलहा रही रागी की फसल

बहरहाल आपको बताते चलें कि जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ती व डाड़ भूमि जो बहुत कम ही उपयोग किया जाता है, ऐसे स्थानों को चिन्हित करनें व रहवासियों में धान की फसल से होने वाली आय की तुलना में कही अधिक आय व मौसम या किटो के प्रकोप से होने वाली क्षति से पड़ने वाले प्रभाव सें बचाव के लिए ऐसी फसल का चयन करना था, जिसका कास्त लागत बहुत ही कम हो एवं उत्पादन ज्यादा हो। इसी उद्देश्य से कृषि विभाग ने जिले में रागी फसल की शुरूवात किया है।जो वर्तमान सीजन में 2200 हेक्टेयर भूमि में फसल रोपीत कराई गई है।इसके लिए
कलेक्टर श्री श्याम धावड़े के कुशल नेतृत्व व दूरदर्शी सोच अनुरूप जिला पंचायत सीईओ हरिश एस. और उप संचालक कृषि विभाग अजय अनंत को प्रगति से नियमित अवगत कराने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया है।इसके परिपालन में
फसल बोआई के शुरूआती चरण से वर्तमान अवधि तक नियमित तौर पर हर पहलूओ पर निगरानी के अलावा कृषि विभाग के मैदानी क्षेत्रों की टीम लगातार कृषक एवं महिला समूह की सदस्यों को वर्तमान समय में जैविक पद्धति से परंपरागत कृषि कार्यो में धान व मक्के के अलावा रागी फसल बोआई के लिए  लगातार प्रेरित करने से हुई फसल की बोआई जो जल्द ही उत्पादन में तब्दील होगी।इसकी बाजार में मांग व औषधीय गुणों की वजह से आर्थिक रूप से लाभ अर्जित करनें के उपरांत अपनी जीवन में एक नई राह निर्माण को गढ रहे हैं।इसके लिए जब स्थानीय किसानों से चर्चा किया गया तो किसानों ने बताया कि पहले धान की फसल में अल्पवर्षा ,किटप्रकोप सहित अन्य कारणों से फसल की उत्पादकता औसत अनुसार नहीं होने से आर्थिक क्षति काफी हद तक प्रभावित करती रही है, लेकिन उनके पास अन्य कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होने की वजह से गांव व परिवार से महिनों दूर रहकर मजदूरी जैसें कार्यों से परिवार का भरणपोषण करते थे।जब उन्हें रागी फसल की खेती के संबंध में कृषि विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा अल्प क्षति के साथ साथ बाजार में इसकी मांग व अच्छी दर प्राप्त होने की जानकारी से अवगत हुए तो बीते वर्ष जिले के विभिन्न क्षेत्रों में हुए रागी फसल की खेती के संबंध में महिला समूह के सदस्यों व कृषको सें जानकारी प्राप्त किया तो वर्षों से जिस विकल्प की तलाश थी वह रागी फसल की खेती नें पूर्ण करने में अहम सहारा बना है।  ।वहीं दूसरी तरफ आकड़ो पर भी गौर करें तो वर्ष 2018-19 में जहां कुछ ही कृषकांे द्वारा परम्परागत तरीके से अपनी घरेलू आवश्यकता हेतु निश्चित क्षेत्र में रागी की खेती करते थे। परंतु वर्ष 2019-20 में बलरामपुर जिला में रागी फसल की खेती की शुरूवात एक क्रांति के रूप में तब्दील हो रही हैं।

-दक्षिण भारत की पहचान फसल अब बलरामपुर जिले की बनी पहचान , अनेक औषधीय गुणों से परिपूर्ण है रागी की फसल

आपको बताते चलें की पहले ही वर्ष में जिले में कृषि विभाग की ओर से 1026 हे0 में प्रदर्शन लगवाया गया था। जिसका कुल उत्पदन 4719 क्विंटल था। जिसमें से 200 क्विंटल रागी बीज प्रक्रिया प्रभारी छ.ग. राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लि0 गेऊर, राजपुर को बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत प्रदाय किया गया था। रागी की पौष्टिक विशेषता के कारण महिला बाल विकास विभाग बलरामपुर द्वारा इसका कृषकों से क्रय ‘‘रेडी टू इट‘‘ तैयार करने में प्रयोग कर रहे है। रागी की रोटी स्वादिष्ट के साथ-साथ डायबटिज रोगी के लिए बहुत ही उपयोगी है। इसी लिए यह किसानों के साथ-साथ आम आदमी में भी प्रचलित हो रही है। रागी की फसल कर्नाटक की मुख्य फसल है यह कर्नाटक के साथ-साथ मुख्य रूप से तमिलनाडू, आध्रप्रदेश, ओडिसा, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश की पहाड़ी क्षेत्र एवं हिमाचल प्रदेश में की जाती है। रागी सबसे पुरानी खाने वाली फसल है, जो घरेलु स्तर पर उपयोग में लायी जाती है। इसको फिंगर बाजरा, अफ्रिकन रागी, लाल बाजरा, मड़ुवा आदि नामों से जाना जाता है। रागी को शुष्क मौसम में भी उगा सकते है। रागी फसल में गम्भीर सुखे को भी सहन करने की क्षमता होती है। रागी फसल कम समय में तैयार होने वाली फसल है। इसको बहुत ही सरल तरीके से वर्ष भर खेती किया जा सकता है। रागी में अन्य अनाज व बाजरे वाली फसलों की तुलना में इसमें प्रोटिन एवं खनिज की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें कैल्शियम एवं पोटेशियम की अधिक मात्रा होती है। यह हिमोग्लोबिन कम वाले व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यांकि इसमें लौह तत्व काफी मात्रा में पायी जाती है। रागी का उपयोग व्यवसायिक रूप में शराब के कच्चे माल, बच्चों के भोजन, दुध गहरा बनाने के लिए और दुधवाली विवरेज बनाने के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन सब कारणों से रागी दिन-प्रतिदिन जिले में प्रचलित होती जा रही है। लोगों में इसकी मांग बढ़ती जा रही है। जिलें में कृषि विभाग द्वारा लगातार कृषकांे की आय बढ़ाने की उद्देश्य से निरंतर प्रयास किया जा रहा है। इसी में रागी की खेती भी एक प्रमुख घटक है, जो किसानों के लिए एक वरदान से कम नहीं है।

-इन क्षेत्रों में हो रहा रागी फसल का उत्पादन

कृषकवर्ग व महिला समूह की सदस्यों को आर्थिक सशक्तिकरण के लिए रागी फसल उत्पादन के लिए लगातार प्रयास सें वर्ष 2020-21 के खरीफ मौसम में इस दफा जिले में 2200 हे0 में रागी की प्रदर्शन लगवाया गया है। जिले में प्रमुख रूप से रागी की खेती विकास खण्ड कुसमी, वाड्रफनगर एवं रामानुजगंज में की जा रही है। जिसमें क्रमशः कुसमी-900 हे0, वाड्रफनगर-400 हे0 एवं रामानुजगंज-200 हे0 में एवं शेष अन्य विकास खण्डों में 500 हे0 में रागी की प्रदर्शन लगवाया गया है। जिसमें विकास खण्ड रामानुजगंज के ग्राम विजयनगर में एक चक में महिला स्व0 सहायता समूह द्वारा 100 हे0 में रागी की खेती की जा रही है। जिसमें शासकीय भूमि 75.00 हेक्टेयर एवं स्वयं की 25 हेंक्यर शामिल है। छ.ग. राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लि0 गेऊर, राजपुर में 195.15 हे0 का बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत कृषकों को पंजीयन कराया गया है। रागी के बड़ते उत्पादन को देखते हुए जिले में रागी की प्रोसेसिंग यूनिट लगाये जाने पर कृषि विभाग एवं जिला प्रशासन से विचार विमर्श चल रही है। रागी प्रोसेसिंग यूनिट लगाने से कृषक द्वारा उत्पादित रागी की गुुणवत्ता में वृद्धि होने के साथ-साथ उपज के मूल्य में भी वृद्धि होगी।

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By Admin

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