बजाज ने लॉन्चिंग से पहले किताब के विषय में बताया. बजाज के मुताबिक इस किताब में महात्मा गांधी की ‘जागरूक हिन्दू’ बनने की यात्रा को बताया गया है, पोरबंदर गुजरात में जन्म से लेकर 1914 तक जब उन्होंने इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका की यात्राएं कीं. बजाज कहते हैं उन्होंने इंग्लैंड में संस्कृत में गीता पढ़ी. जब वो दक्षिण अफ्रीका गए तो प्रीटोरिया में पहले साल के दौरान उनका नियोक्ता मुस्लिम था जिसका अटॉर्नी ईसाई था. क्योंकि गांधी बहुत धार्मिक व्यक्ति थे, इसलिए उन दोनों ने उन्हें अपने धर्म में आने की पेशकश की. गांधी ने उनसे कहा कि वो इस पर विचार करेंगे. लेकिन, धर्मपरिवर्तन से पहले वे इसके लिए आश्वस्त होना चाहेंगे कि उनका अपना धर्म उन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है जो धर्म से चाहते हैं. अगर मुझे कमी दिखाई दी तो मैं आपके पास आऊंगा.”
बजाज ने आगे बताया कि गांधी ने एक जैन मुनि श्रीमंत रायचंद की मदद से हिंदुत्व पर कई किताबें पढ़ने के साथ ईसाई और मुस्लिम धर्म पर भी काफी पढ़ा. इसके बाद वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उनके धर्म में कोई कमी नहीं है जिसकी वजह से उन्हें कहीं और देखना पड़े. “यहीं से वे प्राकृतिक हिन्दू से जागरूक और विद्वतापूर्ण हिन्दू बने.”
धर्म, हिन्दु्त्व और देशप्रेम विशिष्ट थे
किताब में विस्तार से बताया गया है कि महात्मा गांधी के लिए उनका धर्म, हिन्दु्त्व और देशप्रेम विशिष्ट (अलग-अलग) नहीं थे. बजाज ने कहा, उनका धर्म, जिसको लेकर उन्होंने हमेशा जोर दिया कि वो उनके अपने लोगों के लिए था. उन्होंने बार बार कहा कि उनके लिए देशप्रेम और धर्म समान बाते हैं. वे कहते थे “मेरा अपनी भूमि के लिए प्रेम और मेरा अपने धर्म और अपने लोगों के लिए प्रेम समान स्रोत से आता है.
रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय का महात्मा गांधी से विशेष रिश्ता था. बजाज कहते हैं कि वे (टॉलस्टॉय) गांधी के ‘हिंदू देशप्रेम’ से थोड़ा नाखुश थे. टॉलस्टॉय के मुताबिक ये सार्वभौमिक नहीं था. “इस पर गांधी ने आगे चलकर प्रतिक्रिया दी कि मेरा देशप्रेम और मेरा धर्म पर्याप्त संयमित हैं और हर कोई इसे देख सकता है. उन्होंने कहा कि मेरा देशप्रेम मेरे धर्म से ही निकलता है, इसलिए ये विशिष्ट नहीं हो सकता.”
देशप्रेमी नहीं हो सकते अगर आप अपने धर्म को नहीं जानते: गांधी
बजाज कहते हैं कि महात्मा गांधी ने सिखाया कि आप देशप्रेमी नहीं हो सकते अगर आप अपने धर्म को नहीं जानते. मैं उनसे सहमत हूं क्योंकि धर्म ही सभ्यता है. देशप्रेम सिर्फ भौतिक चीजों से ही नहीं आपकी सभ्यता के विचार से भी जुड़ा है. बजाज ने आगे कहा कि महात्मा गांधी ऐसा नहीं महसूस करते थे कि कोई हिन्दू होने से साम्प्रदायिक नहीं हो जाएगा. ये वो बात थी जिस पर वे बहुत स्पष्ट थे.
वर्तमान संदर्भ में क्या गांधी इस पर सहमत होते कि किसी की देशभक्ति का मूल्यांकन उसके धर्म के आधार पर किया जाए, जिसका कि वो पालन करता है. ये सवाल पूछे जाने पर बजाज का जवाब था. “नहीं.” बजाज ने कहा कि महात्मा सोचते कि एक अच्छा मुस्लिम एक अच्छा देशभक्त होगा, एक अच्छा हिन्दू एक अच्छा देशभक्त होगा, एक अच्छा ईसाई एक अच्छा देशभक्त होगा. अगर वे अच्छे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई नहीं हो सकते तो वे अच्छे देशभक्त भी नहीं हो सकते. बजाज के मुताबिक, “महात्मा गांधी किसी का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश नहीं कर रहे थे. वो चाहते थे कि हर कोई आस्था और विश्वास के साथ अपने धर्म का पालन करे, और इसके बारे में सीखे, क्योंकि वे आश्वस्त थे कि धर्म आपको देशप्रेम की ओर ले जाएगा.