इस दुखद समाचार को लिखते वक्त दिल धक से बैठा जा रहा है, जिनके साथ, जिनके मार्गदर्शन में सालों काम किया, अब वो हमारे बीच नहीं रहे, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार और पायनियर समाचार पत्र के संपादक मोहन राव जी हमें छोड़कर चले गए। हैदराबाद के निजी अस्पताल में इलाज के दौरान हार्ट अटैक से शुक्रवार देर रात उनका निधन हो गया। मोहन राव जी काफी समय से लिवर की समस्या से जूझ रहे थे। कुछ दिन पहले ही लिवर की समस्या होने पर रायपुर के मोवा स्थित श्री बालाजी हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती कराया गया था। हालत गंभीर होने पर उन्हें हैदराबाद के अस्पताल रेफर किया गया था।
“अलविदा मोहन भैय्या, आप बहुत याद आओगे”
उनके चाहने वालों और उनके जूनियर पत्रकार साथियों को उम्मीद थी कि हर बार की तरह वो इस बार भी बीमारी को हराकर वापस आ जाएंगे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। हैदराबाद में इलाज के दौरान आए हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। मोहन राव जी को प्रदेश का हर व्यक्ति मोहन भैया कहकर बुलाता था। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनके परम मित्रों में से एक थे। गत वर्ष भी मोहन भैय्या की तबीयत खराब हुई थी, तब भी उन्हें श्री बालाजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उस वक्त स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगियों के साथ उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे थे।
मोहन राव जी के निधन का दुखद समाचार मिलने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट करके उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी है।
वरिष्ठ पत्रकार मोहन राव जी का निधन पत्रकारिता जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। जिसे कभी भरा नहीं जा सकता है। मोहन राव जी को जानने वाले, उनको चाहने वाले, उनके साथ काम कर चुके पत्रकार सभी उनके आकस्मिक निधन से दुखी हैं और श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। मोहन राव जी का पार्थिव शरीर शनिवार को दोपहर 2 बजे के करीब हैदराबाद से रायपुर पहुंचेगा।
मोहन राव जी अपने पीछे अपनी पत्नी और एक बेटी को छोड़ गए हैँ। उनकी बेटी शादी के बाद अमेरिका में रहती हैं। दुख की इस घड़ी में शोक संतृप्त परिवार को ईश्वर दुख सहने की शक्ति दे और दिवगंत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे।
मोहन राव जी 30 साल तक नवभारत समाचार पत्र के संपादक रहे। वहां से सेवानिवृत होने के बाद उऩ्होंने पायनियर हिंदी समाचार पत्र के संपादक का पदभार संभाला था। अपनी धारदार लेखनी और शब्दबाणों से सत्ता पर बैठे लोगों और नौकरशाहों को वे भेद दिया करते थे।
23 अगस्त 2020 को मोहन राव जी ने फेसबुक पर आखिरी पोस्ट लिखी थी,,,ये पोस्ट उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लेकर लिखी थी। उनकी लिखी पोस्ट को हूबहू यहां पोस्ट किया गया है।
एक दिन ये जमाना तुम्हारे गीत गाएगा
बीतेगा ये दौर और वो दौर भी बीत जाएगा
संघर्ष की इस आंधी के बाद एक नया दृश्य आएगा
डटे रहना इस मैदान में चाहे कितना भी शोर हो
एक दिन ये जमाना तुम्हारे गीत गाएगा
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा…..यह जुमला तो बरसों से प्रदेश की फिजाओं में गूंज रहा है लेकिन इसका एहसास 18 दिसम्बर 2018 को उस वक्त हुआ, जब दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के एक छोटे से गांव कुरुदडीह में जन्में भूपेश बघेल ने इस प्रदेश का नेतृत्व सम्भाला। संभव है कि आज के इस लेख को पढ़कर कुछ लोग मेरी आलोचना भी करें परंतु यहां पर उस व्यक्ति की चर्चा की जा रही है जो मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रभाव में आए बिना बीते करीब पौने दो साल से सिर्फ और सिर्फ छत्तीसगढ़ को जिंदा करने की कोशिश में लगा हुआ है। एक नेक, मिलनसार और संवेदनशील इंसान के रूप में उसने अपनी पहचान बनाई है। प्रदेश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति की पीड़ा की जानकारी मिलते ही उसे राहत पहुंचाना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता रहती है।
भूपेश बघेल को मैं बरसों से जानता हूं। अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार और फिर राज्य निर्माण के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में बनी छत्तीसगढ़ की पहली सरकार में मंत्री के रूप में उनके कामकाज को मैने करीब से देखा है लेकिन भूपेश बघेल का असली व्यक्तित्व 2013 से 2018 के बीच में देखने को मिला, जब उन्हें प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व करने का अवसर दिया गया। यह वह वक्त था, जब यह माना जा रहा था कि प्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व खत्म होने को है। तब प्रदेश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के नेता यह मान चुके थे कि कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई नेतृत्व नहीं है और भूपेश बघेल वह मटेरियल नहीं हैं, जो कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता तक पहुंचा सकें।
यहां पर मैं भूपेश बघेल के स्वभाव की बात करना चाहूंगा। स्वभाव से वे बेहद जिद्दी हैं और अपनी जिद पूरी करने के लिए वे किसी भी हद तक जाने में कभी भी नहीं हिचकते हैं। बेशक यह स्वभाव उन्हें अपने पिता नंदकुमार बघेल से मिला है। लेकिन वे जितने सहज और सह्रदय हैं, इसका प्रमाण उन्होंने बीते पौने दो साल में कई बार दिया है। उन्हें यह संस्कार निश्चित रूप से अपनी माताजी से मिला है, जिनके वे बेहद करीब हुआ करते थे। गांव की पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करने वाले भूपेश बघेल ने बीते पौने दो सालों में जिस तरह से छत्तीसगढ़ की परम्पराओं और संस्कृति को जीवित किया है, उससे आम छत्तीगढिय़ा अभिभूत है और तकरीबन हर प्रदेशवासी यह मानकर चल रहा है कि भले अट्ठारह बरस लग गए हों परंतु अंतत: प्रदेश में छत्तीगढिय़ों की सरकार बन ही गई।
बढ़ाते रहना कदम सबकुछ सहते हुए
एक दिन ये जिंदगी खुशियों से सज जाएगी
यह पंक्तियां शायद भूपेश बघेल के लिए ही लिखीं गई होंगी क्योंकि मैदान छोड़कर भाग जाना उनकी फितरत में नहीं है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक उन्होंने एक सामान्य विद्यार्थी की तरह पढ़ाई-लिखाई की और कभी भी मैदान से नहीं भागे। पढ़ते हुए परिवार की खेती-बाड़ी का काम भी बखूबी किया। हल चलाया, बैलों को चराया और एक सामान्य बच्चे व नौजवान की तरह सभी तरह के ग्रामीण खेलकूदों का लुत्फ उठाया। शायद यही वजह है कि हरेली पर उन्होंने पहले बार गेड़ी पर दौड़ लगाई या फिर भौरे को हाथ पर चलाया तो प्रदेश का हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो गया। छोटे बच्चे को अपनी हथेली पर रखकर साधना वही कर सकता है, जिसने गांवों को जिया हो और यह काम भूपेश बघेल ने अनेक बार बखूबी के साथ किया है, जिसका पूरा प्रदेश मुरीद है।
गांव के बाद चुनावी राजनीति का हिस्सा बने भूपेश बघेल ने हार-जीत का स्वाद चखा, सत्तासुख भी भोगा परंतु जैसे ही विपक्ष में पहुंचे तेवर तीखे हो गए। सरकार की ज्यादतियों का दमदारी के साथ सामना किया। प्रदेशवासियों ने उनकी जिद का नमूना उस वक्त देखा जब भाजपा सरकार ने उनके खिलाफ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में झूठा मुकदमा दर्ज कराया तो भूपेश बघेल अपनी बुजुर्ग माता व पत्नी को लेकर गिरफ्तारी देने थाने पहुंच गए। इसके बाद अश्लील सीडी काण्ड में मुकदमा कायम कर जब उन्हें जेल भेजा गया तो उन्होंने जमानत पर रिहा होने से इनकार कर दिया। अनेक उदाहरण देने से बेहतर यह होगा कि बात को एक लाइन पर खत्म की जाए कि केवल भूपेश बघेल की जिद के कारण ही कांग्रेस आज प्रदेश में सत्तासीन है।
अपने लम्बे राजनीतिक जीवन और ग्रामीण परिवेश का होने के कारण भूपेश बघेल ने प्रदेश के गरीबों, आदिवासियों तथा पिछड़ा वर्ग की दिक्कतों को करीब से देखा है। शायद अब उनकी जिद इन सबकी तकलीफों को खत्म करने की है। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान इस पर लगा दिया है। भूपेश बघेल का साफ मानना है कि गांव और ग्रामीणों की जेब तक अगर पैसा पहुंचा दिया जाए तो प्रदेश की तरक्की तय है और जब तरक्की होगी तो खुशियों को कोई नहीं रोक सकता है। खुशियों को मनाने के लिए उन्होंने बीते पौने दो सालों में प्रदेश के हर उस तीज-त्योहार को जिंदा कर दिया, जिसको वर्तमान पीढ़ी भूल चुकी थी। एक स्वस्थ्य और खुशनुमा वातावरण बनाकर भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ को खुशियों के सराबोर करने की राह पर निकल चुके हैं। चूंकि वे स्वभाव से जिद्दी हैं इसलिए किसी को शक नहीं होना चाहिए कि वे अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे। नया छत्तीसगढ़ परम्पराओं, संस्कृति से ओतप्रोत होने के साथ खुशहाल होगा, इस कामना के साथ भूपेश बघेल को जन्मोत्सव की अनंत शुभकामनाएं।