राष्ट्रवाद की रोटी से पेट नहीं भरता साहब ! घर चलाने के लिए रोजगार, चलने के लिए गाड़ी और थाली में निवाला होना जरूरी है।
संपादकीय, 5 सितंबर 2019 सन् 1875 में ‘भारत दुर्दशा’ नाटक की रचना करके कविवर भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने सिर्फ इतना ही लिखा था कि “रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा…