जयपुर, 18 नवंबर 2020

विश्व हेरीटेज सूची में शामिल जयपुर शहर का आज 293वां स्थापना दिवस है. जयपुर शहर की स्थापना 18 नवम्बर 1727 में हुई और आज जयपुर अपना स्थापना दिवस मना रहा है. जयपुर की स्थापना शिकारगाह पर की गई थी. सवाई जयसिंह (द्वितीय) को नाहरगढ़ के नीचे 100 एकड़ के पानी से भरे जंगल काफी प्रिय थे. इनमें वह शिकार खेलने के लिए अक्सर आया करते थे. महाराजा जयसिंह ने एक बार फैसला किया कि राजधानी आमेर के पास सामंजस्यपूर्ण वातावरण तैयार कर एक ऐसा नगर बनाया जाए जिसकी प्रत्येक इमारत और सड़क करीने से बनी हो. हर रास्ता अलग जाना जाए.

प्रिय शिकारभूमि पर एक चौकोर तालाब का निर्माण करवाया:
जनता के रहने के क्षेत्र उनकी गतिविधियों के नाम से पहचाने जाए. यहीं से जयपुर के निर्माण का खाका तैयार होना शुरू हुआ. जयसिंह ने अपनी प्रिय शिकारभूमि पर एक चौकोर तालाब का निर्माण करवाया और उसका नाम तालकटोरा रखा गया. तालकटोरे के पास जयनिवास नाम से महल बनवाया गया, जिसे वृंदावन से आए गोविंद देवजी महाराज को समर्पित किया गया. जयपुर के निर्माण का बीड़ा वास्तुकार विद्याधर ने उठाया और ब्रह्मांड और समय चक्र के द्योतक वृत्त व पृथ्वी के द्योतक वर्गाकार आकृति पर जयपुर का निर्माण किया जाने लगा.

विरासत और विकास की जुगलबंदी जो इस शहर में है, शायद ही कहीं और हो, लेकिन हमारा ‘जैपर’ विश्व का पहला ऐसा शहर है.जिसकी कल्पना बसावट से करीब 150 साल पहले ही कर ली गई. जयपुर को बसाने वाले सवाई जयसिंह द्वितीय रहे जिन्होंने 18 नवम्बर, 1727 को स्थापना की.हालांकि बसावट के बाद भी शहर करवटें बदलता रहा और जैपर से आज मेट्रो सिटी बन गया.इस बीच जयपुर को विश्व विरासत का दर्जा भी मिला.स्मार्ट सिटी का काम भी धरातल पर उतरने लगा है.समय के साथ जयपुर शहर का नाम भी बदलता रहा.जैपर यहां का सबसे पहला नाम था, जो बाद में अंग्रेजी मिनिंग के हिसाब से बदलता हुआ जयपुर हो गया.

293 साल का हो गया जयपुर शहर:
महाराजा सवाई जयसिंह का बसाया जयपुर शहर 293 साल का हो गया है.जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज की ओर से मोती डूंगरी स्थित गणेशजी के मंदिर में पूजा अर्चना कर न्यौता दिया गया और उसके बाद गंगापोल गणेशपोल गेट पर ऊंचाई पर स्‍थापित गणपति की प्रतिमा की पूजा अर्चना करने के लिए नगर निगम ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर और हैरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर ने क्रेन का सहारा लिया.कोरोना संक्रमण के चलते एक महीने तक समारोहपूर्वक मनाए जाने वाला स्थापना दिवस इस बार एक दिन के कुछ ही घंटों में आकर सिमट गया.दोनों महिला मेयर ने एक साथ जयपुर स्थापना दिवस पर पूजा अर्चना के कार्यक्रमों में शामिल होकर एक नजीर भी पेश की.उनका कहना है की पार्टी और नगर निगम भले ही अलग अलग हो लेकिन जयपुर अलग नहीं हैं जयपुर सभी का एक ही हैं.इसलिए हम जयपुर के विकास के लिए एक साथ मिलकर काम करेंगे.जयपुर के हैरिटेज को कायम रखते हुए इसे ग्रेट बनाएंगे.हम जयपुर को मिलकर नंबर वन लेकर आएंगे.

सबसे पहले रखी थी गंगापोल की नींव:
ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट और राजगुरु रत्नाकर पौंड्रिक ने सबसे पहले गंगापोल की नींव रखी. विद्याधर ने नौ ग्रहों के आधार पर शहर में नौ चौकड़ियां और सूर्य के सात घोड़ों पर सात दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और दक्षिण में चंद्र पर चांदपोल बनाया गया. इनके बीच से पानी की नहर और सुरंग गुजरती थी जो अब मेट्रो के काम से नष्ट हो चुकी है. ब्रह्मांड के सिद्धांतों पर आधारित जयपुर शहर अभी तक सुरक्षित माना जाता रहा है, लेकिन अब विकास के नाम पर इसके प्राचीन स्वरूप से खिलवाड़ हो रहा है.

प्राचीन शहर आने वाले कुछ दशकों में खो देगा अपना पूरा वैभव:
परकोटे में प्राचीन इमारतों को तोड़ कॉम्प्लेक्स बनाए जा रहे हैं. दुकानों में तहखाने खोदे जा रहे हैं. परकोटे ढहा कर अतिक्रमण किए जा रहे है. विरासत संरक्षण के नाम पर प्राचीन वास्तु का मूल स्वरूप बदल रहे है. सरकारें विरासत का संरक्षण करने के बजाए खोखले दावे कर रही है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो यह प्राचीन शहर आने वाले कुछ दशकों में अपना पूरा वैभव खो देगा.

पटराणी के शृंगार के नायाब हीरे:
जब जयपुर की नींव डली थी तो यह पहाड़ भी था और किले भी थे. किले की नजर से देखें तो आंखों के सामने यह नई नवेली दुल्हन सा शहर तैयार हुआ. कवि कन्हैयालाल सेठिया ने अपनी प्रसिद्ध कविता धरती धोरां री में इस शहर को नगरों की पटराणी कहा है. यह हवामहल इस पटरानी के शृंगार में एक नायाब हीरे सा नजर आ रहा है.

हर वर्ष दुनियाभर से आते हैं सैलानी: 
293 साल पुराने इस शहर की एक झलक पाने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं तो इन नायाब हीरे का दीदार किए बगैर नहीं रहते. यहां के महल और चौबारे ही मशहूर नहीं हैं बल्कि यहां की आबोहवा भी लोगों को यहां तक खींच लाती है. जयपुर स्थापना दिवस के मौके पर गुलाबी सर्दी की गुनगुनी धूप में नहाए हवामहल और नाहरगढ़ किला इसकी प्राचीर मानो अपने भीतर एक गाथा समेटे हुए है.

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