बिलासपुर, 25 जनवरी 2022

मीसाबंदियों की पेंशन रोकने के मामले में हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को बड़ा झटका दिया है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीसाबंदियों के हक में निर्णय लेते हुए  राज्य सरकार को मीसाबंदियों पेंशन दोबारा शुरु करने का आदेश सुनाया है। मीसाबंदियों की ओर से दायर याचिका पर मंगलवार को चीफ जस्टिस ए.के. गोस्वामी और जस्टिस एन. के. व्यास की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के फैसले को दुर्भावनापूर्ण करार दिया है। 

हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के 2020 में जारी नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए पेंशन जारी करने के आदेश दिए हैं. बता दें सरकार ने साल 2008 से शुरू हुई मीसाबंदियों की पेंशन भौतिक सत्यापन और समीक्षा के नाम पर 2019 में रोक दी थी. इस संबंध में सरकार ने 2020 में दो नोटीफिकेशन जारी किए थे.

सरकार ने दी थी चुनौती
इससे पहले जस्टिस कोशी की सिंगल बेंच ने मीसाबंदियों को पेंशन देने के आदेश दिए थे. इस फैसले को सरकार ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए भूपेश सरकार की ओर से अलग—अलग 39 रिट अपील लगाई गईं थी. इन सभी अपीलों को डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है.

कब हुई थी शुरुआत
मीसाबंदियों को पेंशन की शुरुआत रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि नियम 2008 के माध्यम से हुई थी. मीसाबंदी की मृत्यु पर विधवा को सम्मान निधि की आधी राशि राज्य सरकार देती थी.

कौन हैं मीसाबंदी
1975 में लगे आपातकाल के दौरान मीसा कानून लागू किया गया था. इस कानून का विरोध करके जेल जाने वाले लोगो को मीसाबंदी कहा जाता है. आपातकाल के दौरान मीसा कानून का विरोध करने के कारण उन्हें लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा भी दिया गया था, लेकिन कई गैर भाजपा शासित राज्यों में मीसाबंदियों की पेंशन रोक दी गई है.

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