नई दिल्ली, 20 अप्रैल 21
दो अच्छी तरह से फिट फेस मास्क पहनने से SARS-CoV-2 साइज पार्टिकल को बाहर रखने की क्षमता करीब दोगुना हो जाती है. इससे वे पहने हुए व्यक्ति के नाक और मुंह पर नहीं पहुंचते और उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं करते हैं. एक स्टडी में यह जानकारी मिली है. जरनल JAMA इनटरनल मेडेसिन में छपी रिपोर्ट में सामने आया है कि बढ़ी सुरक्षा का कारण कपड़े की ज्यादा सतहें जोड़ना नहीं, बल्कि किसी खालीपन या पूरी तरह से नहीं फिट हुए क्षेत्रों को हटाना है.
रिसर्चर्स ने क्या कहा ?
अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैलिफोर्निया (UNC) की एसोसिएट प्रोफेसर और स्टडी की मुख्य लेखक Emily Sickbert-Bennett ने कहा कि मेडिकल प्रोसीजर मास्क को उनके मैटेरियल के आधार पर बहुत अच्छी बाहर निकलने की क्षमता वाला तैयार किया जाता है. लेकिन जिस तरह से वे चेहरे पर फिट होते हैं, वह सही नहीं है. मास्क की रेंज की फिटेड फिल्टरेशन एफिशिएंसी (FFE) को जांचने के लिए, टीम ने एक 10 फुट बाय 10 फुट स्टेनलैस स्टील एक्सपोजर चैंबर को छोटे सॉल्ट पार्टिकल एरोसॉल्स से भर दिया था.
शोधकर्ताओं ने मास्क के कई मेल पहने, जिससे यह जांच हो कि ये पार्टिकल्स को उनकी सांस लेने की जगह से बाहर रखने के मामले में कितने प्रभावी हैं. हर व्यक्ति के मास्क या मास्क के मेल को एक मेटल सैंपल पोर्ट से अटैच किया गया, जिससे शोधकर्ताओं के मास्क के नीचे सांस लेने की जगह में घुसने वाले पार्टिकल्स को मापा जा सके. शोधर्ताओं ने इसकी मदद से FFE का पता लगाया. इसमें उन्होंने मास्क के नीचे सांस लेने की जगह में मौजूद पार्टिकल की चैंबर में मौजूद वाले से तुलना की.
UNC स्कूल ऑफ मेडिसिन के Phillip Clapp ने कहा कि उनके पास ऐसे शोधकर्ता भी थे, जिन्हें कई काम करवाए गए, जो व्यक्ति अपने एक आम दिन में करता है, जैसे कमर झुकाना, बात करना और दाएं, बाएं, ऊपर और नीचे देखना. स्टडी में पाया गया है कि मास्क का बेसलाइन FFE अलग लोगों में भिन्न होता है. इसकी वजह हर व्यक्ति का अपना अलग चहरा और मास्क फिटिंग है.