नई दिल्ली, 21 सितंबर, 2020
खेती और किसानों से संबंधित तीन बिलों को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम मचा हुआ है। कोरोना वायरस महामारी के बीच में संसद में लाए गए इन बिलों के खिलाफ भारतीय किसान यूनियन समेत तमाम किसान संगठनों और विपक्ष के नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है। कृषि और किसान से जुड़े इन तीन बिलों में है क्या। किसान को क्या नुकसान है और खेती को क्या फायदा है। इसे समझने के लिए बिल के प्रावधानों को पढ़ना जरूरी है।
पहले लोकसभा और उसके बाद राज्यसभा में लाए गए इन बिलों में आखिर है क्या। पहले इसे समझिये।
(1) कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 (The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020)
इस बिल का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद नोटिफाइड ऐग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (APMC) यानी तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है। इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है। इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं ली जाएगी। यानि इस बिल में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी. प्रावधानों में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है. मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर ख़र्च कम करने की बात कही गई हैं.
2. कृषक (सशक्तिनकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वाटसन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020)
इस बिल के मुताबिक किसानों को अपने कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा। इस बिल के जरिये
अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी, तकनीकी सहायता और फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 (Essential Commodities (Amendment) Bill 2020)
इस बिल के मुताबिक अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्या ज़ आलू को आवश्यलक वस्तुnओं की सूची से हटाने का प्रावधान है. सिर्फ युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि व प्राकृतिक आपदा जैसी ‘असाधारण परिस्थितियों’ के सम ही ये वस्तुएं आवश्यक वस्तुओं में शामिल होंगी। नए बिल से इस तरह की वस्तुओं के भंडारण की सीमा समाप्त हो जायेगी। यानि कॉरपोरेट या पैसे वाला व्यक्ति कितना भी आलू, प्याज, दाल, तिल तेल खरीदकर भंडार कर सकता है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि इससे किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.
अब इन तीनों बिलों का विरोध क्यों हो रहा है। ये भी समझ लीजिये।
क्यों हो रहा है विरोध
पहले बिल का विरोध इसलिये हो रहा है कि किसान अपनी उपज को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति (APMC/Registered Agricultural Produce Market Committee) के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा क्योंकि वे ‘मंडी शुल्क’ प्राप्त नहीं कर पायेंगे। यदि पूरा कृषि व्यापार मंडियों से बाहर चला जाता है, तो कमीशन एजेंट बेहाल होंगे। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है, किसानों और विपक्षी दलों को यह डर है कि इससे अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।
दूसरे बिल का विरोध इसलिये हो रहा है कि मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020 (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020): इस प्रस्तावित कानून के तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा।
तीसरे बिल का विरोध इसलिये हो रहा है कि कृषि क्षेत्र पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुक़सान किसानों को होगा. कृषि मामलों के जानकारों के मुताबिक़ किसानों की चिंता जायज़ है. उन्होंने कहा, “किसानों को अगर बाज़ार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते.”
जानकारों का कहना है कि जिन उत्पादों पर किसानों को एमएसपी नही मिलती, उन्हें वो कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं.
पंजाब में पैदा होने वाले गेहूँ और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफ़सीआई द्वारा किया जाता है, या फिर एफ़सीआई उसे ख़रीदता है.
साल 2019-2020 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीज़न में, केंद्र द्वारा ख़रीदे गए क़रीब 341 लाख मिट्रिक टन गेहूँ में से 130 लाख मिट्रिक टन गेहूँ की आपूर्ति पंजाब ने की थी.
किसानों को डर है कि एफ़सीआई अब राज्य की मंडियों से ख़रीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा. साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की ख़रीद पर लगाता आया है. इस बिल का सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि आने वाले समय में धीरे-धीरे मंडियां खत्म होने लगेंगी। अध्यादेश को उत्तर भारत के 20 लाख जाट किसान सबसे बड़ा झटका मान रहे हैं। उनके मुताबिक बिल किसानों को अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचने की अनुमति देता है। 30 हजार शहरी कमीशन एजेंटों और क़रीब तीन लाख मंडी मज़दूरों के साथ-साथ क़रीब 30 लाख भूमिहीन खेत मज़दूरों के लिए भी ये बिल बड़ा झटका साबित होगा।
कृषि बिल की सबसे बड़ी खराबी ये है कि ये किसान के लिये न होकर बाजार के लिए लाया गया है। इस बिल से दो राज्यों के बीच व्यापार तो बढ़ेगा लेकिन किसान को कोई फायदा नहीं होगा। देश में 86 फीसदी से ज्यादा छोटे किसान अपनी फसल बेचने के लिए एक जिले से दूसरे जिले में नहीं जा पाते हैं। फिर दूसरे राज्य में फसल बेचने जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
बिल कहता है कि पाँच एकड़ से कम ज़मीन वाले किसानों को कॉन्ट्रैकर्टस से फ़ायदा होगा। लेकि जानकारों का कहना है कि कॉन्ट्रेक्ट के आने से किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तीनों ही विधेयकों को किसान-विरोधी षड्यंत्र बताया है। राहुल गांधी ने ट्वीटर पर लिखा, “किसान ही हैं जो ख़रीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं. मोदी सरकार के तीन ‘काले’ अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें MSP व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी ज़मीन पूँजीपतियों को बेच दें. मोदी जी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र.”
मोदी सरकार से इस्तीफा देकर मंत्री पद छोड़ने वाली अकाली दल की हरसिमरत कौर ने कहा कृषि बिल को लाने से पहले पंजाब और हरियाणा के किसानों से नहीं पूछा गया। इधर तमाम विरोधों के बावजूद मोदी सरकार कृषि बिलों को “आज़ादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आज़ादी” देने वाला विधेयक बता रही है। पीएम मोदी ने बीते शुक्रवार को कहा कि
किसानों को एमएसपी का फ़ायदा नहीं मिलने की बात ग़लत है. पीएम मोदी ने कहा, “जो लोग दशकों तक देश में शासन करते रहें हैं, सत्ता में रहे हैं, देश पर राज किया है, वो लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं, किसानों से झूठ बोल रह हैं.”
मोदी ने कहा कि विधेयक में वही चीज़ें हैं जो देश में दशकों पर राज करने वालों ने अपने घोषणापत्र में लिखी थी. मोदी ने कहा कि यहां “विरोध करने के लिए विरोध” हो रहा है. उन्होंने कहा बिचौलिए जो किसानों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा खा जाते थे, उनसे बचने के लिए ये विधेयक लाना ज़रूरी था.
पीएम मोदी ने कहा कि करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा व समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी से करार कर सकेगा। सरकार किसानों के हितों को संरक्षित करेगी। किसानों को चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। निश्चित समयावधि में विवाद का निपटारा एवं किसान को भुगतान सुनिश्चित होगा। उन्होंने कहा कि नए प्रावधानों के मुताबिक़ किसान अपनी फ़सल किसी भी बाज़ार में अपनी मनचाही क़ीमत पर बेच सकेगा. इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के अधिक अवसर मिलेंगे।