नई दिल्ली: 28 अप्रैल
इस खबर को आप पढ़ना शुरु करें..या इस संपादकीय की गहराई में उतरें…..उससे पहले आप नीचे दिखाई दे रहे वीडियो को देख और सुन लीजिये…ताकि आगे की कहानी समझने में आपको ज्यादा दिक्कत न रहे……
29 मार्च 2014 को भारतीय जनता पार्टी ने अपने इस ढ़ाई मिनट के वीडियो को डिजिटल मीडिया पर जारी किया था…विज्ञापन में दिखाया गया कि सबके अच्छ दिन आने वाले हैं…बस मई 2014 में सरकार बनने के बाद भारत और भारतवासियों का भाग्य बदलने ही वाला है…..लेकिन पूरे 5 साल गुजर गए…मोदी पीएम भी बन गए…लेकिन भाजपा के इस विज्ञापन में दिखाए गए अच्छे दिनों का इंतजार देश की जनता आज भी कर रही है….
अब 2019 में जब 17वीं लोकसभा के लिए तीन दौर के चुनाव हो चुके हैं…और 29 अप्रैल को फिर से 9 राज्यों की 71 लोकसभा सीटों पर चौथे चरण के लिए वोट डाले जाने की तैयारी है…प्रधानमंत्री वाराणसी से दूसरी बार पर्चा दाखिल कर मां गंगा का बेटा बनकर वोट मांग चुके हैं….तब ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस बार भारतीय जनता पार्टी 2014 में किए गए अपने अच्छे दिनों के वादों का जिक्र आखिर क्यों नहीं कर रही है……2019 के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने जितनी भी रैलियां जिन जगहों पर भी की हैं….वहां उन्होंने सिर्फ पिछड़ा, दलित और राष्ट्रवाद इन तीन शब्दों का ही जरूरत से ज्यादा जिक्र किया है। महंगाई, बेरोजगारी, गुड गवर्नेंस, करप्शन, शिक्षा, चिकित्सा और अन्य मूलभूत मुद्दों का कहीं कोई उल्लेख नहीं हैं।
चलिए 2014 में भाजपा द्वारा जारी किये गए एकऔर विज्ञापन पर नजर डालते हैं…जो आम लोगों से तब भी जुड़ा था और अब भी जुड़ा है…..
27 मार्च 2014 को ऊपर वाला विज्ञापन भारतीय जनता पार्टी ने डिजिटल मीडिया पर जारी किया था, जिसमें यूपीए सरकार को महंगाई, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, बिजली, किसानों के मुद्दों पर जमकर कोसा गया था,,,,लेकिन अब 2019 में भारतीय जनता पार्टी महंगाई, बेरोजगारी और महिला सुरक्षा के मुद्दों पर वोट मांगने से क्यों कतरा रही है। क्यों भारतीय जनता पार्टी महंगाई और बेरोजगारी पर जवाब देने से बच रही है……जब भी जनहित से जुड़े सवाल भाजपा नेताओं के सामने आ रहे हैं.वो राष्ट्रवाद का तड़का लगा देते हैं, पुलवामा, उरी हमले के बदले की गई सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र करने लग जाते हैं। लेकिन असल मुद्दा कहीं पीछे छूट जाता है।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के संकल्प पत्र (घोषणा पत्र) में “सबका साथ सबका विकास” का वादा किया गया था। भाजपा ने 5 सालों में देश बदलने का रोडमैप जनता के सामने पेश किया था। लेकिन कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें भाजपा सरकार का प्रदर्शन साल 2014 में किये गए वादे के मुताबिक नहीं रहा।
1. महंगाई
भाजपा ने 2014 में आम लोगों के इस्तेमाल की चीजों की जमाखोरी और काला बाजारी रोकने के लिए विशेष अदालत बनाने का वादा किया था। महंगाई को काबू में रखने के लिए कीमत स्थिरता फंड, एफसीआई से खरीद, भंडारण और बंटवारे जैसे अलग-अलग काम के लिहाज से बांटने की बात कही गई थी। एक राष्ट्रीय कृषि बाजार (NAM) बनाने का वादा किया था।
परिणाम – लेकिन हकीकत में विशेष अदालतें बनाने की कोई कोशिश नहीं हुई। कीमत स्थिरता फंड अब तक नहीं बनाया गया है।
2.रोजगार एवं उद्यम
भाजपा ने ढाई करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, रीटेल कारोबार को आधुनिक पहचान देने का वादा किया था। कारोबार के लिए लोन और मार्केट से संबंध उपलब्ध कराने की बात कही थी।
परिणाम- ढाई करोड़ रोजगार सृजित नहीं हुए, करोड़ लोगों की नौकरी उद्योग धंधे बंद होने से चली गईं। ताजा मामला जेट एयरवेज का है।
3. भ्रष्टाचार
भाजपा ने वादा किया था काले धन पर टास्क फोर्स बनाएंगे, विदेश में रखे गए काले धन को वापस लाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. टैक्स की दरों में कमी की जाएगी और टैक्स व्यवस्था को आसान बनाया जाएगा।
परिणाम- भाजपा के सत्ता में आने के तुरंत बाद एक टास्क फोर्स बनाई गई थी, लेकिन विदेश से काला धन देश में लाने के मामले में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है.
4. राम मंदिर
भाजपा ने वादा किया था कि संविधान के दायरे में रहकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।
परिणाम-अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर कई स्तरों पर चर्चा हुई, भाजपा नेता और मंत्रियों ने केंद्र सरकार पर अध्यादेश लाकर राम मंदिर बनाने का दबाव डाला, लेकिन मोदी सरकार अयोध्या की विवादित जमीन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मंदिर मसले पर मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यों की समिति बनाने का निर्देश दिया था.
5. कश्मीर विवाद
भाजपा ने वादा किया था कि कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाया जाएगा. धारा 370 को हटाने के लिए सभी दलों के साथ सर्वसम्मति बनाने की कोशिश की जाएगी.
परिणाम-
धारा 370 हटाने की बजाये भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन किया, कश्मीर पंडितों की समस्या जस की तस है। पुलवामा हमले के बाद राज्य के कई शहरों में सामान बेच रहे कश्मीरियों के साथ मारपीट की गई। इसमें भी यूपी में सबसे ज्यादा कश्मीरी प्रताड़ित हुए। महबूबा ने धारा 370 हटाने की बात पर मोदी को आग से खेलने जैसा बता दिया।
6. महिलाएं
भाजपा का वादा था कि संविधान में संशोधन करके महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की जाएगी।
परिणाम- कांग्रेस के महिला आरक्षण विधेयक को समर्थन देने के बावजूद महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण अभी सपना ही बना हुआ है।
ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा करने से भाजपा बचती रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इन मुद्दों को उठाया ही नहीं। बल्कि 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी इन्हीं सब विषयों को लेकर यूपीए सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अक्सर घेरते रहते थे। भाजपा के नेता रसोई गैस के खाली सिलेंडर, सब्जी तरकारी, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, काला धन, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर सड़कों पर धरना देते रहते थे। स्मृति ईरानी की सिलेंडर और सब्जियों को लेकर सड़क पर धरना देने की ये तस्वीर दुनिया भर में 2014 में वायरल हुई थी..
महंगाई न तब कम थी और न अब कम है….भ्रष्टाचार न तब कम था, न अब खत्म हुआ है, बेरोजगारी तब भी थी, तमाम उद्योग धंधे बंद हो जाने से अब और बढ़ गई है….पेट्रोल-डीजल के दाम अगर 2014 में आसमान छू रहे थे,,,तो अब भी आसमान से ऊपर निकलने को बेताब हैं…. हकीकत में इन मुद्दों का शोर अब सुनाई देना बंद हो गया है…और इसके पीछे वजह है मैन स्ट्रीम मीडिया का इन मुद्दों को लेकर खबर नहीं दिखाना…..मुझे याद है 2010 से लेकर 2014 तक लगातार मैन स्ट्रीम मीडिया ने किस तरह से यूपीए सरकार के खिलाफ संगठित अभियान चलाया था,,,,24 घंटे के न्यूज़ चैनल में मुहिम चलाकर एपिसोड बना-बनाकर यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाता था,,,,जितनी आक्रामकता के साथ स्क्रिप्ट लिखी जा सके और जिस किसी भी मुद्दे पर तत्कालीन मनमोहन सरकार को नाकारा साबित किया जा सके,,,किया जाता था।
दरअसल साल 2010 में जब मिस्र में जनआंदोलन की लहरें उठी तब उसकी हवा भारत तक भी पहुंची थी,,,,टू जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ खेल स्कैम, कोलगेट कांड, आदर्श सोसायटी स्कैम, आतंकवाद, कालेधन के खिलाफ बाबा रामदेव की देश के अलग-अलग शहरों में जाकर छेड़ी गई मुहिम, लोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे का आंदोलन,,,उसके बाद 16 दिसंबर 2012 का निर्भया कांड…इंडिया अंगेस्ट करप्शन को लेकर अरविंद केजरीवाल का सामने आना और धरनों पर बैठना,,ये एक के बाद एक कुछ मामले थे, जिन्हें मैन स्ट्रीम मीडिया ने चासनी में लपेटकर खबरों के रूप में जनता के सामने पेश किया…दूसरा कुछ नामी गिरामी मीडिया चैनल के मालिकों द्वारा भाजपा की शीर्ष नेताओं के साथ की गई बिजनेस डील भी यूपीए के खिलाफ हवा बनाने में कारगर रही।
लेकिन 2019 में जब 17वीं लोकसभा के लिए वोट डाले जा रहे हैं,,,,तब न लोकपाल कोई मुद्दा है, न करप्शन कोई मुद्दा है, बलात्कार अब कोई चर्चा का विषय नहीं है…सरकार की नाकामी गिनाने पर आप देशद्रोही या पाकिस्तान परस्त घोषित कर दिये जाते हैं…2008 के मुंबई हमले में शहीद अशोक चक्र विजेता पुलिस अधिकारी के खिलाफ अब कोई अनर्गल बयानबाजी कर देता है, तो भाजपा के लिए ये कोई मुद्दा नहीं है,,,बल्कि इसे दूसरे तरीके से जायज ठहराने की कोशिश की जाती है,
प्रधानमंत्री अपनी सरकार के 5 सालों के कामकाज की उपलब्धियां ऐसे गिनाते हैं जैसे सारी समस्याएं सिर्फ 2014 से पहले तक थीं, और अब कोई समस्या ही नहीं है, देश में जो कुछ हुआ है वो सिर्फ 2014 से 2019 के बीच ही निर्मित, विकसित हुआ है,,,इससे पहले जैसे देश में कुछ था ही नहीं…कुछ लोग मेरे इस लेख पर आपत्ति कर सकते हैं कि ये सब बातें आज क्यों लिखी जा रही हैं..जबकि लोकसभा चुनाव के 3 चरण बीत चुके हैं…उनके लिए मैं कहना चाहूंगा कि…इस इन बातों को करने के लिए इससे बेहतर टाइमिंग कोई हो ही नहीं सकती…
जिस राज्य (छत्तीसगढ़) में भाजपा का 15 साल तक शासन रहा, वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री के इकलौते दामाद पर 50 करोड़ रुपये के हेराफेरी करने और अन्य वित्तीय अनियमितताएं करने का आरोप लगा है। जिस राज्य (छत्तीसगढ़) में पूर्ववर्ती सरकार ने खुद कॉर्पोरेशन बनाकर शराब बेची, उसी राज्य में तब के आबकारी अधिकारी के घर से लाखों-करोड़ों रुपयों की बरामदगी हो रही है। पुलिस विभाग में कार्यरत जिस स्टेनो की तनख्वाह मात्र कुछ हजार रुपये थी,,,उसके पास करोड़ों रुपये की संपत्ति का होना…अवैध रूप से दूसरों के फोन टैप करने के आरोपों में आर्थिक अपराध शाखा के दफ्तर में हाजिरी दे रहा डीजी स्तर का पुलिस अधिकारी…जिस रिहायशी प्रोजेक्ट को पर्यावरण मंत्रालय ने ही क्लीयरेंस नहीं दी थी,,,उसे सरकारी प्रोजेक्ट बताकर जनता को बेच देना और उसकी आड़ में हजारों करोड़ का गोलमाल ये सब भाजपा शासनकाल में ही तो हुआ है…लेकिन फिर भी ये मैन स्ट्रीम मीडिया की सुर्खियां नहीं है….. अलगाववादी और अलग राज्य की मांग करने वाले तत्वों के खिलाफ भाजपा आग उगलती रही थी,,उन्हीं सब से सत्ता के लिए भाजपा ने अलग-अलग वक्त में गठबंधन किया। प्रधानमंत्री मोदी जब तक गांधी-नेहरू परिवार का नाम लेकर कांग्रेस को कोसते रहते हैं…लेकिन अपने जीवनकाल में नरेन्द्र मोदी से ज्यादा डिजाइनर प्रधानमंत्री मैंने तो कम से कम नहीं देखा है….लेकिन डिजाइनर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाने का मौके न मीडिया को मिलता है…और न कोई सवाल पूछ सकता है..इन बातों का जिक्र करना इस वक्त इसलिये भी जरूरी है कि अपने जीवनकाल में पहली बार ही मैंने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जज एक साथ मीडिया के सामने आते हैं…और अपनी आपबीती सुनाते हैं। न्याय के मंदिर सुप्रीम कोर्ट की चूलें हिलने और सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की नींव दरकने की तस्वीर भी भाजपा शासनकाल में ही देखने को मिली है।
इन सवालों का जिक्र इसलिये भी जरूरी है कि माहौल बनाने में भाजपा से बड़ा दूसरा कोई खिलाड़ी नहीं है। वाराणसी में प्रधानमंत्री बिना खर्च किये चुनाव लड़ने का फॉर्मूला समझाते हैं, लेकिन हकीकत में एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार ने अप्रैल 2014 से अक्टूबर 2017 के बीच विज्ञापन पर 3,755 करोड़ रूपये खर्च किए हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और आउटडोर पब्लिसिटी पर मोदी सरकार ने 37,54,06,23,616 रुपये खर्च किए हैं.
जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने अप्रैल 2014 से अक्टूबर 2017 के बीच इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विज्ञापन में 1656 करोड़ रूपये खर्च किए हैं जिनमें कम्यूनिटी रेडियो, डिजिटल सिनेमा, दूरदर्शन, इंटरनेट, एसएमएस और टीवी के विज्ञापन का खर्च शामिल है.
प्रिंट मीडिया पर मोदी सरकार ने 1,698 रूपये खर्च किए हैं. इसके अलावा आउटडोाजर विज्ञापन पर सरकार ने 399 करोड़ खर्च किए हैं जिनमें होर्डिंग, पोस्टर, बुकलेट और कैलेंडर शामिल है. बीजेपी सरकार ने जितना बजट विज्ञापन पर खर्च किया है, वो किसी मंत्रालय या सरकार के किसी कार्यक्रम के लिए तय किए गए बजट से भी ज्यादा है.
साल 2016 में एक आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने 1 जून 2014 से लेकर 31 अगस्त 2016 तक पीएम मोदी पर बने विज्ञापनों पर 1100 करोड़ खर्च कर दिए.
साल 2015 में दाखिल आरटीआई के जवाब में पता चला था कि पीएम मोदी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात के लिए सरकार ने न्यूजपेपर विज्ञापन पर 8.5 करोड़ रूपये खर्च किए.
गौरतलब है कि 2015 में बीजेपी और कांग्रेस ने विज्ञापन पर 526 रूपये खर्च करने को लेकर आम आदमी पार्टी की जमकर आलोचना की थी. बीजेपी ने कहा था कि आम आदमी पार्टी सरकार विज्ञापनों में जनता के पैसा पानी की तरह बहा रही है।
इतना सब होने के बाद भी लोगों के सामने लोकसभा चुनाव का मतलब सिर्फ नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी या कांग्रेस बनाम भाजपा है तो फिर ये मान लिया जाए कि 2014 में दिखाए गए अच्छे दिन 2024 तक भी आने वाले नहीं है…क्योंकि अब भाजपा का कोई भी नेता ये एक बार भी नहीं कह रहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं…हां वो ये दावा जरूर कर रहे हैं को वो फिर से मोदीजी को लाने वाले हैं…