रायपुर, नक्सलवाद, नक्सलगढ़ लाल-बस्तर चाहे नाम कुछ भी रख दें, लेकिन भय आतंक के बलबूते कुछ लोगों ने बस्तर संभाग में समानांतर सरकार अघोषित तौर पर चला रखी है।  बलप्रयोग की तमाम कोशिशों के बाद अब पहली बार जनजागरण के माध्यम से नक्सलियों के जीवन की दुःख और तबाही को पहली बार पटकथा बनाकर एक फ़िल्म बनाई जा रही हैं। नई सुबह, जिसमें दंतेवाड़ा जिले के पुलिस अधीक्षक डॉ। अभिषेक पल्लव खुद नायक की किरदार में नज़र आएंगे.डॉक्टर से आईपीएस, आईपीएस से अभिनेता बनने जा रहे हैं एसपी साहब, फिल्म के जरिये नक्सलवाद से लड़ेंगे लड़ाई, कोशिश है कि इस फिल्म के जरिए बस्तर, हिंसामुक्त एक नई-सुबह लाने वाली है।

 

लगभग चार दशक से अधिक होने को आए हैं, हजारों जवानों की शहादत और निर्दोष लोगों की लगातार हो रही हत्या के बाद भी छत्तीसगढ़ में सरकार नक्सल समस्या का हल नहीं खोज पाई है। और फिर ऐसे में एसपी बनकर दंतेवाड़ा आया नौजवान जो पहले एक डॉक्टर था, फिर वह बना आईपीएस अफसर और दंतेवाड़ा आकर नक्सलगढ़ में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच सिसकते ग्रामीणों के दर्द के साथ इस संवेदनशील अफसर के दिल को छू गया था। रूपन इस अफसर ने पहले तो नक्सलवादी हिंसा का इलाज बंदूक की गोली और बारूद की जगह स्थानीय ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने की नीयत से खुद दूरस्थ पहुंच विहीन गांवों में जाकर मेडिकल कैम्प लगाता है, और लोगों का मुफ्त इलाज करता है। जिससे लोगों का भरोसा जीत सकता है और उन्हें बुनियादी सुविधाओं में शामिल करना संभव है।

नक्सलगढ़ में अब यह अफसर नक्सलवाद के दुष्परिणामों के प्रति लोगों में जनजागृति लाने के उद्देश्य से फिल्म बनाने में जुट गया है। एसपी अभिषेक पल्लव खुद फ़िल्म में नायक का किरदार भी निभा रहे हैं। डॉ अभिषेक हर मोर्चे पर नक्सलियों को मुंह तोड़ जवाब देने के साथ ही जनहित के नाम पर नक्सलियों की घिनौनी करतूतों और खौफुली इरादों को बेनकाब करने के लिए वर्तमान में एक शार्ट फिल्म बनाने मे लगा हैं। अब इस फिल्म के जरिये ही कैंसर बन चुकी नक्सलवाद का इलाज करने की कोशिश में जुटा हुआ हैं।

नक्सलवाद के खिलाफ जो फिल्म बनाई जा रही है उसमें सभी किरदार पुलिस अधिकारी और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने ही एक्टिंग की है। इस फिल्म में स्वयं एस पी अभिषेक पल्लव खुद बतौर नायक नज़र आएंगे। इसकी पटकथा, गीत, संवाद जिले में पदस्थ एडिशनल एसपी साहब सूरज सिंह परिहार ने लिखा है। फिल्म का नाम ‘नई सुबह’ है। 10 मिनट की इस शार्ट फिल्म में 100 से ज्यादा कलाकार काम करेंगे।

एसपी साहब ने बताया कि दो महिने पहले ही पाँच लाख के ईनामी और नक्सली छात्र संगठन के अध्यक्ष की पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत की खबर जानकर कुआसदा बालक आश्रम में एक छात्र को ब्रेकडाउन हो गया था। एनकाउंटर की खबर पाकर वह लगातार वह छात्र रोता रहा था उसके पास मिले मोबाइल को चेक किया गया तो उसमें नक्सल ने कई वीडियो दिखाए और नक्सली साहित्य मौजूद पाया गया। एसपी पल्लव इस घटना से बेहद मर्माहत थे। जानकारी के मुताबिक इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख दिया था। यही घटना इस फ़िल्म निर्माण की वजह बनी।और डॉ.पल्लव ने ठान लिया कि वह भी नक्सलियों की तर्ज पर जंगल के अंदर रहकर फिल्म बनाकर, गीत-संगीत प्रदर्शन के जरिए नक्सलवाद के नकारात्मक, विध्वंसक विचारों का जवाब सकारात्मक तरीके से करेंगे और ऐसे ही शार्ट फिल्म और छोटे-छोटे वीडियो के लिए जरिये उनके नापाक इरादों को नाकाम करना होगा।

ऐसा होगा असर
एसपी पल्लव ने बताया कि फिल्म में रियल स्टोरी है, जिसमें बताया गया है, कि कैसे नक्सलियों ने आदिवासियों के लिए खोले गए स्कूल और अस्पतालों को तोड़ा, कैसे वो हर परिवार से बच्चों को जबर्दस्ती उठाकर अपने साथ ले गए हैं। नक्सलवादी ग्रुप में किस तरह ग्रामीणों का खासतौर पर महिलाओं का शोषण होता है।बाहर के लोगों को जल्दी प्रमोशन देकर तेलगू कॉडर में किस तरह से प्रमोट करते हैं, जबकि साथ मे ज्वॉइन करने वाले स्थानीय ग्रामीणों को किसी भी तरह का प्रमोशन तक नहीं दिया जाता। कैसे इनके साथ गए युवक युवतियों को शादी करने का मन होता है तो उसकी नसबंदी करा देते हैं गर्भपात करा देते हैं।एसपी पल्लव ने बताया कि इस तरह की कुछ चीजें हैं जो टचिंग इफेक्ट रखती हैं और हम इस तरह के भावानात्मक रूप से छूने वाले चीजों को फोकस कर रहे हैं जो, नक्सल लाइफ में जाने के बाद स्थानीय लोगों को यातना के रूप में सहन करना पड़ता है, हम इन सब बातें को सामने लाकर नक्सलवाद से लोगों का मोह भंग कर रहे हैं, ताकि नक्सलवाद का दुष्परिणम आम जनता के सामने आ सके, जिससे आम लोग इस समस्या से निपटने के स्वस्फूर्त तरीके खोजने को आतुर होंगे।  इस  मुव्ही के माध्यम से स्कूल, आश्रम, में इसका प्रदर्शन कर, लोगों को सकारात्मक तरीके से नक्सलवाद के खिलाफ जागरूक किया जाएगा।

फिल्म में 100 से ज्यादा कलाकार हैं। ये कलाकार डीआरजी के युवा हैं जो कि आत्मसमर्पित नक्सली हैं उन्हें शामिल किया गया है। जो कि उन्हीं के जैसे ही दिखते हैं जो कि उन्हें ज्यादा टच कर पाएंगे। एसपी अभिषेक पल्लव ने बताया कि फिल्म की शूटिंग बेहद गोपनीय तरीके से बारसूर, दंतेवाड़ा और कुआकोंडा इलाके कें जंगलों के भीतर सुरक्षित और गोपनीय तरीके से की गई है।

फ़िल्म में रियेलिस्टिक टच होना शामिल है। इन्हीं के द्वारा ही जगह का चयन किया गया। उन्हें नक्सलियों की सारी गतिविधियों की जानकारी है। फिल्म की शूटिंग बेहद संक्षिप्त तरीके से जंगल के भीतर की गई है। इसलिए नक्सलियों को इसका पता नहीं चला और उन्होंने हमला नही किया। यह पहली फिल्म है, इसमें एक सप्ताह के भीतर शूटिंग पूरी तरह से कर ली गई है। अब इसमें एडिटिंग का काम चल रहा है, सप्ताह भर के भीतर फिल्म पूरी हो जाएगी। फिल्म शूट करने के लिए बाहर से पूरी यूनिट बुलाई गई थी। जिन्होंने फिल्म की शूटिंग की और अब वे एडिटिंग का काम कर रहे हैं। जो कि अंतिम चरण में है।

एसपी साहब ने बताया कि फिल्म को शूट करने के पहले सीआरपीएफ, डीआरजी और यहां तैनात फोर्स को बताया गया था। बार्डर पर शूटिंग के दौरान दूसरे जिले की पुलिस को बता दिया गया था ताकि कोई गलतफहमी न हो जाए और हम पर हमला हो जाए। इस फिल्म में हमने असली सितारों का प्रयोग किया है। साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि कोई दुर्घटना न हो जाए ऐसी सावधानी रखी गई थी।

एसपी पल्लव ने बताया कि इसकी भाषा ऐसी रखी गई है ताकि छोटे बच्चे और ग्रामीण समझ पाएं। फिल्म को हिंदी और गोंडी में तैयार किया गया है। हिंदी में करने के पीछे उन लोगों को नक्सलियों की सच्चाई बताने वाली जो नक्सलियों को लेकर साफ्ट फीलिंग रखते हैं। ग्रामीण और बच्चों के लिए गोंडी भाषा में तैयार किया गया है।

हेल ​​लाइफ का रियल लाइफ में काफी असर होता है। अब यह देखना है कि एसपी साहब की यह नई दवा इस नक्सल रोग को जड़ से समाप्त करने में बहुत प्रभावी साबित हो पाती है। एक सप्ताह के भीतर यह शार्ट मूवी बनकर तैयार हो जाएगी और हम भी यही चाहते हैं कि यह फिल्म आदिवासियों के दिमाग पर कुछ ऐसा असर डाले कि वह उनके बहकावे में भूलकर भी न आ सके।

@तस्वीर गूगल.

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