नई दिल्ली, 30 अक्टूबर 2019
राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करने वाले किसी विद्यार्थी या फिर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे किसी छात्र को अगर भारत की विदेश नीति पर लेख लिखने को कहा जाएगा, तो जाहिर है उसकी लेखनी में पंचशील, गुटनिरपेक्षता, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, समरसता और अहस्तक्षेप जैसे शब्दों का अभाव मिले। वो इसलिये क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में भारत की विदेश नीति में धीरे-धीरे आमूल-चूल परिवर्तन आ चुका है। नरेन्द्र मोदी शासनकाल में भारत की विदेशनीति बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। इसकी पुष्टि भारत के विदेश सचिव के उस बयान से की जा सकती है जो बीते दिनों उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित रायसीना डॉयलॉग के दौरान दिया था, विदेश सचिव ने कहा था कि “भारत गुटनिरपेक्षता के अतीत से बाहर निकल चुका है और आज अपने हितों को देखते हुए दुनिया के अन्य देशों के साथ रिश्ते बना रहा है।”
वर्तमान में भारत, विश्व के लगभग सभी मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है और अधिकांश बहुपक्षीय संस्थानों में उसकी स्थिति मज़बूत हो रही है। विशेषज्ञों का मनाना है कि भविष्य में भारत की विदेश नीति इस बात पर निर्भर करेगी कि G-20 और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में वह किस प्रकार की भूमिका निभाता है।
कैसे परिभाषित होती है विदेश नीति?
- विदेश नीति एक ढाँचा है जिसके भीतर किसी देश की सरकार, बाहरी दुनिया के साथ अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को अलग-अलग स्वरूपों यानी द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय रूप में संचालित करती है।
- वहीं कूटनीति किसी देश की विदेश नीति को प्राप्त करने की दृष्टि से विश्व के अन्य देशों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने का एक कौशल है।
- किसी भी देश की विदेश नीति का विकास घरेलू राजनीति, अन्य देशों की नीतियों या व्यवहार एवं विशिष्ट भू-राजनीतिक परिदृश्यों से प्रभावित होता है।
- शुरुआत के दिनों में यह माना गया कि विदेश नीति पूर्णतः विदेशी कारकों और भू-राजनीतिक परिदृश्यों से प्रभावित होती है, परंतु बाद में विशेषज्ञों ने यह माना कि विदेश नीति के निर्धारण में घरेलू कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत की विदेश नीति: मुख्य उद्देश्य
- किसी भी अन्य देश के समान ही भारत की विदेश नीति का मुख्य और प्राथमिक उद्देश्य अपने ‘राष्ट्रीय हितों’ को सुरक्षित करना है।
- उल्लेखनीय है कि सभी देशों के लिये ‘राष्ट्रीय हित’ का दायरा अलग-अलग होता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय हित के अर्थ में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिये हमारी सीमाओं को सुरक्षित करना, सीमा-पार आतंकवाद का मुकाबला, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, साइबर सुरक्षा आदि शामिल हैं।
- अपनी विकास गति को बढ़ाने के लिये भारत को पर्याप्त विदेशी सहायता की आवश्यकता होगी। विभिन्न परियोजनाओं जैसे- मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटीज़, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, डिजिटल इंडिया, क्लीन इंडिया आदि को सफल बनाने के लिये भारत को विदेशी सहयोगियों, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, वित्तीय सहायता और टेक्नोलॉजी की ज़रूरत है।
- उल्लेखनीय है कि हाल के कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति के इस पहलू पर नीति निर्माताओं ने काफी अधिक ध्यान दिया है।
- विश्व भर में भारत का डायस्पोरा भी काफी मज़बूत है और तकरीबन विश्व के सभी देशों में फैला हुआ है। भारत की विदेश नीति का एक अन्य उद्देश्य विदेशों में रह रहे भारतीय को संलग्न कर वहाँ उनकी उपस्थिति का अधिकतम लाभ उठाना है, इसी के साथ उनके हितों को सुरक्षित रखना भी आवश्यक होता है।
- संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत की विदेश नीति के मुख्यतः 4 महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं:
- भारत को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों से बचाना।
- ऐसा वातावरण बनाना जो भारत के समावेशी विकास के लिये अनुकूल हो, जिससे देश में गरीब से-गरीब व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुँच सके।
- यह सुनिश्चित करना की वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज़ सुनी जाए और विभिन्न वैश्विक आयामों जैसे- आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण और वैश्विक शासन के मुद्दों को भारत प्रभावित कर सके।
- विदेश में भारतीय प्रवासियों को जोड़ना और उनके हितों की रक्षा करना।
भारतीय विदेश नीति के मुलभूत सिद्धांत हैं:
- पंचशील सिद्धांत: उल्लेखनीय है कि पंचशील सिद्धांत को सर्वप्रथम वर्ष 1954 में चीन के तिब्बत क्षेत्र तथा भारत के मध्य संधि करने के लिये प्रतिपादित किया गया और बाद में इसका प्रयोग वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संचालित करने के लिये भी किया गया। पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का पारस्परिक सम्मान।
- पारस्परिक आक्रमण न करना।
- परस्पर हस्तक्षेप न करना।
- समता और आपसी लाभ।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ
- भारत किसी विशेष देश के विरुद्ध किसी अन्य देश या देशों के समूह द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन नहीं करता है जब तक कि ये प्रतिबंध अंतर्राष्ट्रीय सर्वसम्मति के साथ न अधिरोपित किया जाए। ध्यातव्य है कि भारत ऐसे शांति सैन्य अभियानों में ही हिस्सा लेता है जिनमें संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना बल शामिल हों।
- भारत अन्य देशों के आतंरिक मामलों में दखलअंदाज़ी करने में विश्वास नहीं रखता, परंतु यदि कोई देश अनजाने में या जानबूझकर भारत के राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करता है तो भारत बिना समय बर्बाद किये हस्तक्षेप करने में नहीं झिझकेगा।
- भारत आक्रामकता के स्थान पर निर्माणात्मकता पर ज़ोर देता है। भारत का मानना है कि युद्ध समस्या का हल नहीं बल्कि एक नई समस्या की शुरुआत होता है। परंतु धैर्य की नीति को भारत की कमज़ोरी नहीं माना जा सकता।
बदलती भारतीय विदेश नीति
- भारत की वर्तमान विदेश नीति की सबसे खास विशेषता यह है कि इसमें पूर्व की सभी नीतियों की अपेक्षा जोखिम लेने की प्रवृत्ति सबसे अधिक है।
- भारत अपनी दशकों पुरानी सुरक्षात्मक नीति को बदलते हुए कुछ हद तक आक्रामक नीति की ओर अग्रसर हो रहा है।
- डोकलाम में भारत की कार्रवाई और वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय नीति के प्रमुख उदाहरण हैं।
- कई जानकारों का मानना है कि भारत की वर्तमान विदेश नीति में विचारों और कार्रवाई की स्पष्टता दिखाई देती है।
- बदलते वैश्विक राजनीतिक परिवेश में भारत अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिये किसी भी औपचारिक समूह पर निर्भरता को सीमित कर रहा है।
- भारत ने अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखने का एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और अमेरिका तथा रूस के साथ भारत के संबंध इस तथ्य के प्रमुख उदाहरण हैं।
आगे की राह
- यद्यपि कार्रवाई की स्पष्टता एक स्वागत योग्य कदम है, परंतु जटिल मुद्दों और नीतियों के लिये बारीक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
- अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता में कमी आ सकती है, अतः आवश्यक है कि संबंधों में संतुलन बनाए रखा जाए।
- विदेश नीति का घरेलू राजनीतिकरण एक चिंता का विषय है। जिसके चलते विदेश नीति का निर्णय लेते समय नेतृत्व को घरेलू कारकों का ध्यान देना पड़ता है और विदेश नीति प्रभावित होती है।