रायपुर। छत्तीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के बीच काम कर रहे विभिन्न संगठनों ने मिलकर खेती-किसानी के मुद्दों पर संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चे छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के गठन की घोषणा की है। इस मोर्चे में छत्तीसगढ़ किसान सभा, राजनांदगांव जिला किसान संघ, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), दलित आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित आदिवासी मंच (सोनाखान), गांव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, परलकोट किसान कल्याण संघ, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान सभा (सरिया), आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन, भारत जन आंदोलन, आदिवासी महासभा और राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद् आदि संगठन प्रमुख हैं। इस प्रकार छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के 21 संस्थापक संगठन हैं। ये सभी संगठन मिलकर प्रदेश में 20 से ज्यादा जिलों में किसानों और आदिवासियों के बीच काम कर रहे हैं और पिछले एक साल से तालमेल बनाकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर साझी कार्यवाहियां आयोजित कर रहे हैं। राजनांदगांव जिला किसान संघ के नेता सुदेश टीकम को छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन का संयोजक बनाया गया है।

आज यहां आयोजित एक पत्रकार वार्ता में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के गठन की घोषणा करते हुए 27 नवम्बर को केंद्र और राज्य सरकारों की कृषि और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ पूरे प्रदेश में किसान श्रृंखला बनाने की घोषणा की गई।

छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं सुदेश टीकम, आनंद भाई, आलोक शुक्ला, संजय पराते आदि ने केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए तीन कृषि विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि ये तीनों कानून मिलकर देश की बर्बादी और अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण का रास्ता खोलते हैं और इसलिए इनकी वापसी तक छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन का अभियान जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि इन कृषि विरोधी कानूनों का मुख्य मकसद देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा किसानों की फसल को लागत मूल्य से भी कम कीमत पर छीनना और अधिकतम मुनाफा कमाते हुए उपभोक्ताओं को लूटना है। ये कानून सार्वजनिक वितरण प्रणाली को तबाह करते हैं और नागरिकों की खाद्यान्न सुरक्षा को नष्ट करते हैं।

छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के नेताओं ने कहा कि हमारे संविधान में कृषि राज्य का विषय है। लेकिन प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने मोदी सरकार के इन कानूनों को निष्प्रभावी करने की जुमलेबाजी के साथ मंडी कानून में जो संशोधन किए हैं, उसमें किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने तक का प्रावधान नहीं किया गया है। इन कानूनों से किसानों के हितों की रक्षा नहीं होती। इसलिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन की स्पष्ट मांग है कि छत्तीसगढ़ सरकार केंद्र सरकार के कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए पंजाब सरकार की तर्ज़ पर एक सर्वसमावेशी कानून बनाये, जिसमें किसानों की सभी फसलों, सब्जियों, वनोपजों और पशु-उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने, मंडी के अंदर या बाहर और गांवों में सीधे जाकर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदना कानूनन अपराध होने और ऐसा करने पर जेल की सजा होने, ठेका खेती पर प्रतिबंध लगाने और खाद्यान्न वस्तुओं की जमाखोरी पर प्रतिबंध लगाने के स्पष्ट प्रावधान हो।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन प्रदेश में काम कर रहे सभी किसान संगठनों को नीतिगत सवालों पर एकजुट करेगा, ताकि केंद्र और राज्य सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ एक तीखा प्रतिरोध आंदोलन खड़ा किया जा सके। इस आंदोलन के केंद्र में वे गरीब किसान, आदिवासी और दलित समुदाय रहेंगे, जिन पर इन नीतियों की सबसे तीखी मार पड़ रही है। ये समुदाय खेती-किसानी की समस्याओं के साथ-साथ निर्मम विस्थापन और बदतरीन सामाजिक-आर्थिक शोषण के भी शिकार हैं, जिनके खिलाफ लड़े बिना किसानों की व्यापक एकता कायम नहीं की जा सकती। यह किसान आंदोलन पिछले दो वर्षों से इन संगठनों द्वारा चलाये जा रहे साझा आंदोलन के गर्भ से पैदा हुआ है। इसलिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन केवल विभिन्न किसान संगठनों की एकता का ही प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि समूचे किसान समुदाय के व्यापक संघर्षों को विकसित करने के लिए उनके दुख-दर्दों, आशा-आकांक्षाओं और भविष्य में एक शोषणविहीन समतामूलक समाज की स्थापना के उनके सपनों का भी प्रतिनिधित्व करता है।

किसान आंदोलन के नेताओं ने कहा कि इस मंच के अधिकांश घटक संगठन अपने अखिल भारतीय संगठनों के जरिये किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े हैं। 27 नवम्बर को जब दिल्ली में हजारों किसान संसद पर प्रदर्शन कर रहे होंगे, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े संगठन गांव-गांव में किसान श्रृंखला का निर्माण करके मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों और भूपेश सरकार की किसानों और आदिवासियों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीनता के खिलाफ “कॉर्पोरेट भगाओ – खेती-किसानी बचाओ – देश बचाओ” के केंद्रीय नारे पर विरोध कार्यवाही को अंजाम देंगे।

0Shares
loading...

By Admin

You missed