संपादकीय, 5 जून, 2020

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करता है। दुनिया भर में इसे 5 जून को मनाया जाता है।  इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य है कि लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक और प्रोत्साहित करना।  हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्व पर्यावरण दिवस 2020 विशेष थीम के साथ मनाया जा रहा है।

इस वर्ष विश्व पर्यावरण की थीम है टाइम फॉर नेचर, यानि प्रकृति के लिए समय। विश्व में बढ़ती मोटर गाड़ियां, कारखाने, लगते उद्योग और कटते वृक्ष, पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहे है।  बिना पर्यावरण के जीवन संभव ही नहीं है।  ऐसे में हमें वातावरण दूषित करने से बचने के अलावा प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर काम करना होगा ।

लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारत ही नहीं पूरा विश्व चिंतित हैं। भारत में 25 मार्च से 31 मई तक लागू रहे लॉकडाउन के दौरान कारखाने बंद रहे, सड़कों से गाड़ियां नदारद रहीं। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत की आवोहवा एकदम साफ, सुथरी और सांस लेने लायक हो गई। नदियों औऱ सागरों का जल निर्मल हो गया। जालंधर, मेरठ जैसे शहरों से हिमालय पर्वत साफ-साफ दिखाई देने लगा। आसमान एकदम नीला हो गया। जंगलों में जानवरों की अठखेलियां बढ़ गईं। समुद्र तटों पर कछुओं की फौज उतर आई। ये सब खबरें प्रकृति के सुधरने का संकेत देती हैं।

यकीनन इस शांति ने हमारे पर्यावरण को बदला है, लेकिन इसकी कीमत से समझौता नहीं किया जा सकता। सवाल यह है कि क्या प्रदूषण को मनुष्य महामारी के बहाने नहीं बल्कि अपने स्तर पर, आदतों द्वारा और उसका सरंक्षण करते हुए नहीं बचा सकता। क्या पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषण पर हमेशा के लिए लॉक डाउन नहीं लग सकता।

लेकिन 1 जून से लॉकडाउन के 5वें चरण में जैसे-जैसे कारखानों, फैक्ट्रियों, दफ्तरों, सार्वजनिक परिवहन, ट्रेनों, हवाई जहाज आदि के चलने की छूट दी गई है, उसने फिर से चिंता खड़ी कर दी है कि क्या दो महीने तक लोगों ने जिस शुद्ध ऑक्सीजन और सुकून भरे माहौल में जीवन जिया है, अब वो फिर से वापस प्रदूषणयुक्त और अशांत होने वाला है। विकास के नाम पर फिर से पेड़ों की बलि चढ़ाई जानी लगेगी। हरियाली उजाड़ी जाने लगेगी, खेल के मैदानों को छोटा या खत्म कर दिया जाएगा। डामर की सड़कों के लिए कई टन वजनी विशाल वृक्ष धाराशायी कर दिये जाएंगे।

संभव है विकास की बलिवेदी में तमाम ऐसे कृत्यों को किया जाएगा। लेकिन विश्व पर्यावरण दिवस पर हर भारतीय नागरिक इतना तो कर ही सकता है कि अपने आस-पास जहां भी खाली जमीन दिखाई दे, वहां कम से कम एक पौधा अवश्य लगाए। पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए हमें पर्यावरणप्रेमी बनना ही होगा।

सन् 1972 में सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र ने इस विश्व पर्यावरण दिवस को मनाना शुरू किया था। इस दौरान स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमें करीब 115 देशों ने हिस्सा लिया।  इसी के बाद से इसे पूरे देश में मनाने की परंपरा शुरू हो गई. जिसके बाद पर्यावरण संरक्षण को लेकर भारत में भी एक विधेयक पास किया गया।  19 नवंबर 1986 को इस अधिनियम को लागू कर दिया गया।  देश में पहला पर्यावरण दिवस भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में मनाया गया।

वैश्विक आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 60 वर्षों में किए गए तमाम प्रयासों और जलवायु परिवर्तन के असंख्य वैश्विक समझौतों के बावजूद पर्यावरणीय स्थिति में वो सुधार नहीं हो पाया था जो पिछले 60 दिनों में वैश्विक लॉकडाउन के चलते हुआ है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का एक अनुमान है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 70 लाख मौतें होती हैं। लॉकडाउन के कारण जहरीली गैसों के उत्सर्जन में अस्थाई कमी आना निश्चित रूप से एक बड़ी राहत है, लेकिन यह कमी भारत जैसे देश के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं है।

पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश जिस लक्ष्य को लेकर चला है वो कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा दिए बगैर हासिल नहीं हो सकता दूसरी तरफ हम बिना सांस लिए भी आगे नहीं बढ़ सकते।

 

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