रायपुर, 26 मई 2020

नौतपे की भीषण गर्मी और कोरोना संक्रमणकाल के बीच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े 300 किसान संगठनों ने 27 मई को देशव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में किसान संघर्ष समिति 28 मई को भी प्रदर्शन करेगी। किसान संगठनों ने गांव, गरीब, किसान और प्रवासी मजदूरों को आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा देने की मांग को लेकर देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया है।

छत्तीसगढ़ में किसानों, दलित-आदिवासियों से जुड़े 25 से ज्यादा संगठन इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, किसानी प्रतिष्ठा मंच, भारत जन आंदोलन, छग प्रगतिशील किसान संगठन, राजनांदगांव जिला किसान संघ, क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छग आदिवासी कल्याण संस्थान, छग किसान-मजदूर महासंघ, किसान संघर्ष समिति कुरूद, दलित-आदिवासी मंच, छग किसान महासभा, छग आदिवासी महासभा, छग प्रदेश किसान सभा, किसान जन जागरण मंच, किसान-मजदूर संघर्ष समिति, किसान संघ कांकेर, जनजाति अधिकार मंच, आंचलिक किसान संगठन, जन मुक्ति मोर्चा और छत्तीसगढ़ कृषक खंड संगठन इस प्रदर्शन में शामिल होंगे।

किसान संगठनों में केन्द्र सरकारी की किसान विरोधी नीतियों को लेकर आक्रोश है। किसान संघर्ष समन्वय समिति के पदाधिकारियों ने किसानों से अपील की है कि केन्द्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों को लेकर घर-घर जाकर किसानों और आदिवासी, मजदूरों को जागृत किया जाएगा। 27 मई को होने वाले प्रदर्शन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध जताने की रणनीति बनाई गई है। किसान अपने घरों, खेतों, मनरेगा स्थलों, गांव की गलियों में दो गज की दूरी छोड़कर कतार बनाकर बैठेंगे और अपने संगठनों के झंडे-बैनर के जरिये आधे घंटे तक अपना विरोध दर्ज कराएँगे।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेशाध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कृषि कार्यों को मनरेगा से जोड़ने और प्रवासी मजदूरों सहित सभी ग्रामीणों को काम देने; रबी फसलों, वनोपजों, सब्जियों, फलों और दूध को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने और समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत का डेढ़ गुना देने; सभी ग्रामीण परिवारों को छह माह तक 10000 रुपये मासिक आर्थिक सहायता देने; सभी जरूरतमंदों को छह माह तक प्रति व्यक्ति 10 किलो अनाज मुफ्त देने, राशन दुकानों के जरिये सभी आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुएं सस्ती दरों पर प्रदान करने और राशन वितरण में धांधली बंद करने; शहरों में फंसे ग्रामीण मजदूरों को उनसे यात्रा व्यय वसूले बिना सुरक्षित ढंग से उनके गांवों में पहुंचाने और बिना सरकारी मदद पहुंच चुके प्रवासी मजदूरों को 5000 रुपये प्रवास भत्ता राहत के रूप में देने; खेती-किसानी को हुए नुकसान के लिए प्रति एकड़ 10000 रुपये मुआवजा देने; किसानों से ऋण वसूली स्थगित करने और खरीफ सीजन के लिए मुफ्त बीज, खाद और कीटनाशक देने; किसानों और ग्रामीण गरीबों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज़ से मुक्त करने; डीजल-पेट्रोल की कीमत न्यूनतम 25 रुपये घटाने; किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाकर 18000 रुपये वार्षिक करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने की मांग उठाई जा रही है।

 

उन्होंने कहा कि जब तक कानून बनाकर फसल को सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता और किसानों को कर्जमुक्त नहीं किया जाता, खेती-किसानी की हालत नहीं सुधारी जा सकती। मनरेगा को भी कृषि कार्यों से जोड़ने की जरूरत है, तभी अपने गांवों में पहुंचे करोड़ों प्रवासी मजदूरों को काम देना संभव होगा। इसी प्रकार, गांवों के जिन मजदूरों ने अपना शरीर गलाकर इस देश के औद्योगिक विकास में अपना योगदान दिया है, आज संकट के समय उनके घरों में उन्हें सुरक्षित पहुंचाना भी केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी है, लेकिन वह इस जिम्मेदारी से भी भाग रही है और सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा भी दे रही है।

 

प्रवासी मजदूरों के बारे में छत्तीसगढ़ सरकार के रवैये की भी इन किसान संगठनों ने तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि पांच लाख से ज्यादा छत्तीसगढ़ी मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए है और एक लाख की भी वापसी नहीं हुई है। जिन मजदूरों के फंसे होने की पुख्ता सूचनाएं राज्य सरकार को दी गई हैं, उन्हें भी सुरक्षित वापस लाने के कोई प्रयास नहीं हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रदेश से जो प्रवासी मजदूर गुजर रहे हैं, उनके साथ भी मानवीय व्यवहार नहीं किया जा रहा है और क्वारंटाइन सेंटर बदइंतजामी के शिकार हैं, जहां मजदूरों को पौष्टिक भोजन तक उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है। अभी तक 10 मजदूर इन केंद्रों में मर चुके हैं, जिसकी जवाबदारी तक लेने से सरकार इंकार कर रही है। इसी प्रकार, मनरेगा में बजट आबंटन बढ़ाये बिना ही प्रवासी मजदूरों को काम देने की जुमलेबाजी हो रही है। मनरेगा के कानूनों के तहत एक परिवार को लगातार 15 दिनों तक काम मिलना चाहिए, जबकि अप्रैल माह में औसतन 10 दिनों का ही काम मजदूरों को मिला है।

 

इन किसान संगठनों का मानना है कि यदि सरकार कोरोना संकट के समय भी कार्पोरेटों का 69000 करोड़ रुपये माफ कर सकती है, तो गांव के गरीबों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को भुखमरी से बचाने और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए नगद राशि राहत के रूप में देने की मांगों को भी पूरा कर सकती है। किसान नेताओं ने बताया कि इन मांगों पर ग्राम सरपंचों को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपे जाएंगे।

 

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