जयपुर, 13 अगस्त 2020

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि और दिन गुरुवार है। आज गोगा नवमी है और इस दिन गोगा देव यानी श्री जाहरवीर का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं। जिन्हें जाहरवीर गोग राणा के नाम से जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादों की पंचमी और नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है। गोगाजी को हिन्दू और मुसलमान दोनों पूजते हैं। गुजरात में रैबारी जाति के लोग गोगाजी को गोगा महाराज के नाम से बुलाते हैं।

कैसे हुआ गोगा देव का जन्म ?
गोगा देव को राजस्थान के लोग सांपों के देवता मानते हैं और इसी रुप में उनकी पूजा की जाती है।  गोगाजी की मां बाछल देवी नि:संतान थीं।  संतान को पाने के लिए उन्होंने तपस्या की। बाछल देवी की तपस्या देखकर गुरु गोरखनाथ बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने बाछल देवी को पुत्र का वरदान दिया।  जिसके बाद गोगा देव का जन्म हुआ। गोगा देव  गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में चूरु जिले के ददरेवा गांव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान चूरु जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में है। कायम खानी मुस्लिम समाज गोगा देव को जाहर पीर के नाम से पुकारता है।  ददरेवा स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्धा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। हिंदू इन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं

हनुमानगढ़ जिले के नोहर में गोगामेडी स्थान है। इसे गोगाजी का समाधि स्थल कहा जाता है। गोगा देव के दर्शनों को आने वाले श्रद्धालुओं को जातरू कहा जाता है। जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक ( माथा टेकते) लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं।

गोगाजी की जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है।

कहां-कहां मनाया जाता है त्योहार-

गोगा देव को गुरु गोरखनाथ का प्रमुख शिष्य माना जाता है। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को प्रथम मानते हैं। इस त्योहार को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य कई राज्यों में धूमधाम से मनाते हैं।

गोवा नवमी का महत्व-

भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की नवमी गोगा देव का जन्म हुआ था। गोगा देव की पूजा 9 दिनों तक की जाती है। यानी पूजा-पाठ श्रावणी पूर्णिमा से आरंभ होकर नवमी तिथि को समाप्त होता है। आज के दिन लोग घरों में अपने ईष्ट देवता गोगा देवी की वेदी बनाते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।

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