मोहन राव, वरिष्ठ पत्रकार
जिस किसी ने भी बिरगांव में एक नाबालिग पर डण्डे बरसाते पुलिस अफसर को देखा, उसका ह्रदय दर्द, पीड़ा, क्रोध और आक्रोश से भर गया। आम आदमी की इस पीड़ा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी महसूस किया और तत्काल ट्वीट करके इस पूरी घटना को अमानवीय बता दिया।
मुख्यमंत्री ने घटना को अमानवीय बताकर यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार की पुलिस को यह अधिकार किसी ने नहीं किया है कि बे-कसूरों पर लाठियां बरसाईं जाएं। उन्होंने यह संदेश भी दिया कि पुलिस ने अपनी हैसियत से बढ़कर काम किया तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा परंतु वाह रे प्रदेश की नौकरशाही। संवेदनशील और मानवीयता से भरे मुख्यमंत्री के ट्वीट (उनकी भावना और आदेश) को हवा में उड़ा दिया। जिन पुलिस इंस्पेक्टर ने लगातार दो दिनों तक सड़कों पर ताण्डव किया, आने-जाने वालों पर बिना वर्दी पहने लाठियां बरसाईं, मुख्यमंत्री के ट्वीट के बाद एसएसपी, रायपुर ने उस इंस्पेक्टर को केवल थाने से मुक्त किया। हैरान करने वाली बात यह है कि पुलिस को मानवीयता का पाठ पढ़ाने वाले प्रदेश के पुलिस महानिदेशक इस पूरे मामले में चुप्पी साधे रहे। गृहमंत्री और अपर मुख्य सचिव (गृह) ने भी खामोश रहना ही बेहतर समझा।
उरला थाने के इंस्पेक्टर ने बीते दो दिनों में बिरगांव की सड़कों पर जिस तरह का नंगा नाच नाचा है, उसको वीडियो के माध्यम से सभी ने देखा है। पुलिस विभाग के उन आला अफसरों ने भी जरूर देखा होगा, जो आए दिन बैठकें लेकर अथवा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मातहतों को जनता के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने का पाठ पढ़ाते रहे हैं। इस वीडियो ने पुलिस महकमें की नंगी सच्चाई को सामने लाकर रख दिया है और इंस्पेक्टर की करतूतों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पूरा प्रदेश प्रश्न कर रहा है कि मां के साथ जा रहे उस नाबालिग ने ऐसा क्या अपराध कर दिया था, जिस पर इंस्पेक्टर ने जमीन पर गिरा-गिराकर डण्डे बरसाए। बचाव करने सामने आई मां को भी धक्का देकर गिरा दिया गया। इतना ही नहीं, जब कुछ नौजवानों ने उसका विरोध किया, तो अहंकार से भरे उस पुलिस अफसर उनको भी धमकाया और काम में दखलंदाजी नहीं देने की हिदायत देते हुए बोला, यह सब वह ऊपर के निर्देश पर कर रहा है, जो भी सामने आएगा, उसे ठोंक दूंगा, दफन कर दूंगा। उसने साफ सहा कि जिसको जो उखाडऩा हो, उखाड़ ले।
इंस्पेक्टर की यह बातें सत्ता को चुनौती है और यह संदेश दे रही हैं कि प्रदेश के सबसे महंगे थानों में माने जाने वाले उरला थाने में उसकी पोस्टिंग यूं ही नहीं कर दी गई है। इसके लिए उसने बकायदा बड़ी कीमत चुकाई है। शायद इसी के कारण उसने साफ चुनौती दी कि जिसको जो उखाड़ते बने, उखाड़ ले। घटना के बाद उस पर कार्रवाई के नाम पर जो दिखावा किया गया, वह साबित करता है कि उसका कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता है। कार्रवाई ने प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा शासनकाल की तरह कांग्रेस सरकार में भी थानों की बोली लगाई जा रही है और कीमत मिलने के बाद वहां तैनात अफसर इसी तरह की शर्मनाक और अमानवीय हरकतें करते हैं, जिससे सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ता है।
इस घटना से सरकार के कामकाज की पोल भी खोल दी है। जिस प्रदेश में मुख्यमंत्री सीधे नाराजगी जता रहे हों, वहां के अफसरों के हौसलों को दाद देनी पड़ेगी कि वे ना-फरमानी पर उतारू हो गए हैं। मुख्यमंत्री की इच्छा व मंशा के विपरीत जाकर वही कार्रवाई कर रहे हैं, जो उन्हें खुद पसंद हैं। होना तो यह चाहिए कि एसएसपी, रायपुर को घटना की जानकारी मिलते और मुख्यमंत्री की नाराजगी को देखते हुए उस इंस्पेक्टर को तत्काल प्रभाव से निलम्बित करके उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करा देना था। एसएसपी, रायपुर ने ऐसा नहीं किया तो आईजीपी, रायपुर अथवा डीजीपी को हस्तक्षेप करना चाहिए। गृहमंत्री व अपर मुख्य सचिव (गृह) को भी बीच में आना चाहिए क्योंकि यह प्रकरण राज्य सरकार के साथ पुलिस विभाग की छवि से जुड़ा हुआ है परंतु दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ। दिखावे के लिए इंस्पेक्टर को थाने से हटा दिया गया। कुछ दिन बाद वह कॉलर खड़ी करके फिर आ जाएगा और फिर कहने लगेगा कि देखा मैने कहा था कि मेरा कोई कुछ नहीं उखाड़ पाएगा।
यहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सामने आने की जरूरत है क्योंकि अगर इस ना-फरमानी को यहीं पर नहीं रोका गया, तो भविष्य में यह बड़ी महामारी का रूप ले लेगी। ना-फरमानी करने वाले नौकरशाहों को तत्काल सबक सिखाने की जरूरत है क्योंकि प्रदेश के मतदाताओं ने कांग्रेस और भूपेश बघेल को चुना है ताकि वे उनकी हिफाजत कर सकें, इन ना-फरमान वर्दी वाले अफसरों को नहीं चुना है, जो वर्दी के दम पर अराजकता फैलाते रहेंगे और प्रदेश की शांत फिजा को खराब करते रहेंगे।